अरी ओ विष कन्या नादान.
चली वापस जा तू आपान.
नहीं पा सकती अब तू पार.
चाहे कर ले षोडश शृंगार.
जबरदस्ती अधरों का पान.
किया कवि का तुमने अपमान.
इंदु-सी लगती, मद्य-स्नात!
बिंदु का होगा वज्राघात.
बंदनी छीन बिंदु पी आज.
चिता चिंता की देगी साज.
बिंदु बोलेगी - आओ बाज
अरी मैं ही तेरी सरताज.
2 टिप्पणियां:
कवि के पास तो उसकी लेखनी कि अद्भुत , अपार शक्ति होती है । इसलिए विषकन्या कवि का कुछ नहीं बिगाड़ सकती ।
बेहद सुन्दर कविता.............
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