रविवार, 26 सितंबर 2010

हम से मत मिलो अरी बाले!

"स्नेहित कम केश क़तर काले. 
हम से मत मिलो  अरी बाले! 
लज्जित ललाम लोचन के निज 
तारक ने  तोड़ दिये ताले." 

"स्वनज निज मीत प्रीत पाले 
शब्दों में मुझको उलझाले. 
यदि रहें ना तारक नयनों में 
तो मैं प्रस्तुत, मुझको ला ले."

19 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

कमाल की रचना है प्रतुल ....ब्लाग जगत में यह श्रृंगार कम देखने को मिलता है ! हार्दिक शुभकामनायें

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

मुझे समझ आए या ना आए पर लोग समझ रहे हैं. मैं इससे बहुत खुश हूँ.

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

मित्र मुझे सतीश जी से ईर्ष्या सी हो रही है.

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

वो समझ गए पर मैं अभागा समझ ना पाया.

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

मैं सागर किनारे बैठ भी प्यासा ही रहा.

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

काश मैं किसी नदिया के तीरे होता तो शायद मेरी प्यास बुझ जाती.

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

तो हे नटखट श्याम आओ और मेरा काव्य प्राशन करवाओ.

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

यार अब तो बहुत हो चुकी ये समझ में ना आने वाली साहित्यकारी. सीधे सीधे सरल भाषा में पूछता हूँ. प्रतुल प्यारे अपपनी कविता का अर्थ मुझे भी समझा दो.

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

प्रतुल प्यारे कित्थे हो?

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

मित्र दीप, मैं यहीं हूँ, मेरे पिछले दो महीने के श्रम की क्षति हो गयी है.
अतः मैं लगभग एक सप्ताह गायब रहने वाला हूँ. हाँ अर्थ बता जाता हूँ.
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"ओ कम चिकने [तेल रहित] व काले अर्ध केश वाली बाले! मुझसे मत मिला करो. मेरे जो नयन सौन्दर्य के सम्मुख सदा नत रहते थे उन लज्जित व संयम से ललाम बने नयनों के तारक ताले तोड़ कर बाहर भाग खड़े हुए हैं. सौन्दर्य के पिपासु उन तारकों को संयम के ताले तोड़ने में आपके इन अर्धकेश से बड़े सौन्दर्य ने ही उकसाया था. अतः अबसे मुझसे मिलने की आपको ज़रुरत नहीं मेरे नयन बिन पुतलियों के हो गये हैं. सीधा सा अर्थ है मैं अंधा हो गया हूँ."

इस पीड़ा को सुनकर बाला कहती है :
______________
"स्वप्न में मिलने वाले ओ मेरे मित्र! मेरे प्रीत को पालने वाले तुम मुझे अपने शब्दों में उलझा लो, और यदि तुम्हारे नयनों से तारक भाग गये हैं, तो मैं भरपायी को प्रस्तुत हूँ, तुम मुझे अपने नयनों में बंदी कर लो."

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.............. यहाँ ला ले का अर्थ प्रवेश करा लेने से है.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

धन्यवाद सतीश जी,
मुझे हमेशा अमित-भय बना रहता है कि वे मुझे शब्द और भाव रसिक के अतिरिक्त कामुक या लम्पट ना मान लें. लेकिन मैं अपने उद्देश्य को लेकर इस ब्लॉग जगत में आया हूँ, कृपया ऐसे ही प्रोत्साहन देते रहें.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

प्रिय बंधुवर प्रतुल जी
क्या बात है ! क्या बात है ! क्या बात है !
कम केश क़तर काले
अर्थात् अर्ध केश वाली
अर्थात्
बॉब कट !
प्रतुल जी , रहस्य उद्घाटित हो रहे हैं … :) :)
अति सुंदर सरस सुखदायक सृजन हेतु साधुवाद !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Amit Sharma ने कहा…
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Amit Sharma ने कहा…

कवि मैं तो प्रथम तै ही तों बरजत आयो
मीच आँख खेल्यो तुही समझ ना पायो

शब्दन कूँ ब्रह्म जान,भक्ति रस सों कर श्रृंगार
कर लीला गान, संसारी गुणगान भंवर टार

श्रृंगार ही जो करन चाहे, सजन चुन ऐसा
ना जिए ना मरे अमित सुन्दर वैसा का वैसा

Amit Sharma ने कहा…
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Amit Sharma ने कहा…
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Amit Sharma ने कहा…

आवत सबही सब कुछ समझ कौन क़तर केश वाली
अरे मधुप छोड़ मधुबन, मधुभाजन चाटन की ठानी
मधु मथन को भजन कर मधुमल्ली माल जो धारी
मधु-माधव हो सदा जीवन,मधुरारी अमितभय हारी
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
मधुप>>>> भंवरा
मधुभाजन>>>>> मदिरापात्र
मधुमथन>>>> मधु नामक दैत्य को मथने वाले, श्रीकृष्ण
मधुमल्ली>>>>> मालती पुष्प
मधु-माधव>>>>> बसंत के दो मास—चैत्र और बैसाख।
मधुरारी>>>>> मधु नामक दैत्य के शत्रु, श्रीकृष्ण

Rohit Singh ने कहा…

प्रतुल हाहाहाहा भैया में भी इस बार ढेर हो गया। भला हो दीप का जो इसका अर्थ समझ में आ गया। मित्र अजीत जी के ब्लॉग से सीधा उनकी टिप्पणी पढ़ कर भाग कर आया हूं तुम्हारे ब्लॉग पर। देख लो मैं कहता था न कि तुम्हारी पंक्तियां कहीं न कहीं महाकवियों के आंगन तक पहुंचने की कोशिश करती हैं और एकदिन जरुर पहुंच जाएंगी। आप तो मानते नहीं थे, आखिर हम आम पाठक जो ठहरे। अब मान लो और गुरुत्तर जो जिम्मेदारी खुद उठा ली है उसमें लगे रहो। अमित भाई के बारे में क्या कहूं.....कहीं निष्काम कर्मयोगी बना दें तु्म्हें तो भी शिकायत नहीं कर सकता। छुट्टी का हक तो खैर बनता है। फिर मिलते हैं। हां बाकी कविताएं भी पढ़ ली हैं। उसपर अब कोई टिप्पणी बेमानी हैं.....

बेनामी ने कहा…

Pratul Ji,

Kya bat hai....Shringar Ras ka bahut hi badiya prastuti hai....