शनिवार, 22 मार्च 2014

श्वास का स्यंदन

दुर्दान्तता है प्रेम की
उद्दाम उच्छल आग में
चल रहा है श्वास का
स्यंदन बिना रुके हुए.
धँस रहे हैं चक्र दोनों
स्नेह-शुभ्र-पंक में
हाँकता हूँ मदन-अश्व
हृदय की लगाम से.
म्लान मुख हो गया
उर मदन-अश्व हाँकते
किन्तु स्नेह-पंक से
स्यंदन ज़रा हिला नहीं.
श्लथ हुई हैं इन्द्रियाँ
संस्रस्त पूर्ण तन-वदन
पर स्मृति स्नेह की
स्यंदन को बढ़ा रही.

13 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

स्मृतियाँ नेह बरसाती रहती हैं..... बहुत सुंदर लिखा है

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

नेह बरसाती स्मृतियाँ ...

RECENT POST - प्यार में दर्द है.

ZEAL ने कहा…

Awesome !!

Unknown ने कहा…

प्रतुल जी सदासयता के लिए आभार , आपका आना अच्छा लगा , इधर व्यस्तता के कारण आपका सनिध्य नही हो पाया मन मे मलाल है आपके काव्य का तो सदा से कायल रहा हूँ मैं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (23-03-2014) को इन्द्रधनुषी माहौल: चर्चा मंच-1560 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

आदरणीया मोनिका जी, आपका विश्लेषणपरक प्रेरक सन्देश पढ़कर ही घरेलु चर्चा सुख की स्मृति हो आयी। इसलिए ब्लॉगजगत में टहलने को नियमित कर हूँ । स्वास्थ्य की दृष्टि से भी चेहरादिखाऊ दावतों में आना-जाना कम करूँगा।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

आदरणीय धीरेन्द्र जी, आभारी हूँ आप घर आये। प्रेमी हृदय 'स्व पीड़ा' से भी प्रेम करता है, वियोग-विरह में भी जीने का आलम्बन ढूँढ लेता है। आपकी रचना में वही अर्थ निहित है।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

आदरणीया दिव्या जी, आपकी पारखी दृष्टि उत्तम खोजती है इसलिए आपके दर्शन दुर्लभ होते हैं। आपके एक शब्द 'Awesome' में वैसा ही सुख पाता हूँ जैसा तपस्वियों को देवी-देवताओं के 'तथास्तु' कहने में मिला करता होगा।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

आदरणीय कुशवंश जी, आपका स्वभाव आपकी रचनाओं से झलकता है। आपका आशु कवित्व बहते झरने की तरह है 'निर्मल'। लेकिन मेरे काव्य की वास्तविकता 'एक पोखर' की सी है जो प्रेमी-प्यासों को पास बुलाना चाहती है। बतरस की चाह तरह-तरह से वाक्य-विन्यास बुनती है भावों का प्राकट्य करती है।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

आदरणीय मयंक जी, आप भावों से लबालब रहने वाली बारहमासी नदी हैं इसलिए सूखे जलस्रोतों और नलकूपों के इर्द-गिर्द पहुँचकर उन्हें प्रासंगिक बनाये रखते हैं। आभारी हूँ आपकी आशीर्वादमय शुभकामनाओं का।

Anamikaghatak ने कहा…

adbhut shabd winyas

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

सुधार *
ब्लॉगजगत में टहलने को नियमित हो रहा हूँ ।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

एना जी,
प्रशंसा के लिए आभारी हूँ।