स्नेह
अपनी देह से अब न रहा
देह
को है स्नेह अपने प्राण से
प्राण
लेकिन तड़पता है विरह में
विरह
की अनुभूति सच्चा प्रेम है
प्रेम
तुमसे या स्वयं से है अभी
वरन्
मन कब का हुआ निज विरत था.
अपनी देह से अब न रहा
देह
को है स्नेह अपने प्राण से
प्राण
लेकिन तड़पता है विरह में
विरह
की अनुभूति सच्चा प्रेम है
प्रेम
तुमसे या स्वयं से है अभी
वरन्
मन कब का हुआ निज विरत था.
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