मैं संकेतों में याद तुम्हें
करता रहता हे मधुर कसक
जिसके द्वारा तुम मिले मुझे
उसका आभारी हृदय-चषक.
आँखों में हो आकार लिये
मानस में छाया रूप बना
नव ढंग सूझते नहीं मुझे
कि व्यक्त करूँ हृत नेह घना.
तुम हो अस्तित्व हमारा है
तुम बिन ये जीवन कारा है
अब तक व्यतीत जो समय हुआ
तेरी यादों में हारा है.
कर पाऊँ न तेरे मैं दर्शन
पर बँधा तुम्हारे हूँ कर्षण
पलभर को भी तेरे प्रभाव
से मुक्त नहीं होता है मन.
हो कसक रूप में तुम जीवित
मुझ तक ही हो अब तक सीमित
पहले उद्धृत करता था मैं
तुमको, अब तुम करती उद्धृत.
करता रहता हे मधुर कसक
जिसके द्वारा तुम मिले मुझे
उसका आभारी हृदय-चषक.
आँखों में हो आकार लिये
मानस में छाया रूप बना
नव ढंग सूझते नहीं मुझे
कि व्यक्त करूँ हृत नेह घना.
तुम हो अस्तित्व हमारा है
तुम बिन ये जीवन कारा है
अब तक व्यतीत जो समय हुआ
तेरी यादों में हारा है.
कर पाऊँ न तेरे मैं दर्शन
पर बँधा तुम्हारे हूँ कर्षण
पलभर को भी तेरे प्रभाव
से मुक्त नहीं होता है मन.
हो कसक रूप में तुम जीवित
मुझ तक ही हो अब तक सीमित
पहले उद्धृत करता था मैं
तुमको, अब तुम करती उद्धृत.
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