यौवन कगार पर खड़ा हुआ
प्यासा मन खेल रहा होली
नारी ... अपनी 'ह्री' से खेले
देवर ... भाभी जी से खेलें
औ' हम ... खेलें 'दर्शन' होली।
प्यासा मन खेल रहा होली
सपनों से, सपने रूठ-रूठ
जाते हैं, जब आँखें खोलीं।
पलकों के अन्दर नयनों से
अंगुली खेलें काज़ल होली
अंगुष्ठ खेलता बहना का
भैया के माथे पर होली।
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माधव .. अपनी 'श्री' से खेलेजाते हैं, जब आँखें खोलीं।
पलकों के अन्दर नयनों से
अंगुली खेलें काज़ल होली
अंगुष्ठ खेलता बहना का
भैया के माथे पर होली।
.
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नारी ... अपनी 'ह्री' से खेले
देवर ... भाभी जी से खेलें
औ' हम ... खेलें 'दर्शन' होली।
माधव = बसंत
श्री = शोभा, ऐश्वर्य
ह्री = लज्जा
37 टिप्पणियां:
बस दर्शन से काम निपटा लेगें -भाई उसके लिए तो पूरा साल पड़ा है -होली तो अंकवार भरने का त्यौहार है !
होली है!
बहुत सुन्दर होली| धन्यवाद|
पलकों के अन्दर नयनों से
अंगुली खेलें काज़ल होली
अंगुष्ठ खेलता बहना का
भैया के माथे पर होली।
वाह...क्या कमाल लिखा है...मेरी बधाई स्वीकारें.
नीरज
.
होली में दिल्ली आयेंगे ,
हम होली वहीँ मनायेंगे ।
अपने भैया के मस्तक पर हम ,
खुशियों का तिलक लगायेंगे ।
भाभी जी की मीठी गुझिया ,
संग बाँट-बाँट के खायेंगे ।
फिर मिलकर हम दोनों उनको
अबीर-गुलाल लगायेंगे।
मिलकर खूब सतायेंगे।
होली में दिल्ली आयेंगे ,
हम होली वहीँ मनायेंगे।
.
होली पर शुभकामनाएं
निरामिष: शाकाहार : दयालु मानसिकता प्रेरक
यहाँ वहाँ आपकी टिप्पणियाँ पढ़ी.मन मुग्ध हो गया और आपकी पोस्ट पर आकर 'दर्शन'होली खेल तो तृप्त हो गया.
"यौवन कगार पर खड़ा हुआ
प्यासा मन खेल रहा होली
सपनों से, सपने रूठ-रूठ
जाते हैं, जब आँखें खोलीं।"
होली पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका स्वागत है.
बस दर्शन से काम निपटा लेगें.. भाई उसके लिए तो पूरा साल पड़ा है- होली तो अंकवार भरने का त्यौहार है! होली है!
@
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अरविन्द अभी ना लगो .. अंक.
होली में होता मन .. सशंक.
हाथों में बेशक हो .. अबीर
वो भी दिखता है मुझे .. पंक.
हो आप नहीं .. मिष्ठान रंक.
'दर्शन' करता.. कर दृष्टि बंक.
पिचकारी .. वृश्चिक लगे मुझे
ना जाने कब .. लग जाये डंक.
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Patali-The-Village ने कहा…
बहुत सुन्दर होली| धन्यवाद|
@
हे गाँव गुलाबी, बोल रहे तुम
धन्यवाद ... सुन्दर होली.
'प्रेम' ... आपके आने पर
खुद बना रहा है ... रंगोली.
मेघ शराबी ... चपला ऊपर
लुटा रहे ... अपनी झोली.
धमकाते ... बाहों में आओ.
खेलेंगे ... यौवन होली.
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वाह...क्या कमाल लिखा है...मेरी बधाई स्वीकारें.
@
नीरज जी को करूँ .. नमस्ते.
मन ही मन .. होली-होली.
शब्द प्रशंसा .. सुन शरमाता
स्तब्ध .. गद्य वाली बोली.
सप्त स्वरों के .. मस्तक पर
संगीत कर रहा है .. रोली.
मुख में जिह्वा .. अधर-दंत से
खेल रही .. गायन होली.
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@ दिव्या जी,
भैया-भैया कहकर तुम सब.
छीनो मुझसे मेरा मनसब*.
जो बात नहीं कह पाते लब
वो स्वयं खबर बन हुई तलब.
आँखें अचरज से खुलीं, अदब
ढक रहा अश्रु का कल्पित टब.
गम नहीं खुशी में भी जब-तब
आते चख-कोरों से 'डब-डब'.
'सारिका' छिपाती अपनी छब.
'दिव्या' प्रकाश का दिव्य-बलब.
सब साफ़-साफ़ दिखता जिसमें
तम जितने भी कर ले करतब.
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आए होरी खेलन रसीया,
मत बोलो भई शंकित राग।
स्नेह भरी पिचकारी कर में
फिर झूलसाए कैसी आग॥
होली के इस शुभ अवसर पर,
गुलालों से धुल रहे हैं दाग।
काव्यमय प्रतिक्रिया से पावन,
यूँ कलम खेल रही है फाग़।
suprabhat guruji.....
bahut achhi rangoli sajaye hain ......
holinam.
यहाँ तो कमेन्ट मे भी होली के रंग बरस रहे हैं। आखिरी पाँक्तियाँ इस रचना के बहुत अच्छी लगीं आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें।आपकी नज़र कुछ पँक्तियाँ----
रंग प्रेम का डाल कर होली खेलें यार
होली सा प्यारा कहाँ और भला त्यौहार
चलो लगायें दुआर पर रंगों का अंबार
रंगो सब को प्रीत से बढ जायेगा प्यार
होली होली खेलते लाल हुये हैं गाल
सडकों पर करते युवा देखो आज धमाल
होली के त्यौहार पर झूमें गायें लोग
घर घर देखो पक रहेमीठे छप्पन भोग
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आए होरी खेलन रसिया,
मत बोलो भई शंकित राग।
स्नेह भरी पिचकारी कर में
फिर झुलसाए कैसी आग॥ ... बेहद सुन्दर पंक्तियाँ .
होली के इस शुभ अवसर पर,
गुलालों से धुल रहे हैं दाग।
काव्यमय प्रतिक्रिया से पावन,
यूँ कलम खेल रही है फाग़। ... आभार का अम्बार.
@ सुज्ञ जी,
मेरे सुर में मिला रहे सुर
है मेरा ये परम सुभाग
जितना फैंटो दूध नेह का
उतनी ही उठती है झाग.
आओगे निश्चित ही मिलने
मुझको ये मिल गया सुराग
अतिथि आता उससे पहले
आता है निर-आमिष काग.
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अब कविता ही शेष रही
मैं खेल रहा उससे होली.
कलम कल्पना से रंजित कर
दी, पिय से खेली होली.
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नेह रंग होता है गाढ
जब होता अहं परित्याग
इष्ट मोह है मानव भाव
वरना हो जाता वैराग
anandam....anandum.....anandum.......
f a g u n a s t e........
खामोशी भी और तकल्लुम भी ,
हर अदा एक क़यामत है जी
@ आप कितना अच्छा लिखती हैं ?
मुबारक हो आपको रंग बिरंग की खुशियाँ .
हा हा हा sss हा हा हा हा ssss
http://shekhchillykabaap.blogspot.com/2011/03/blog-post.html
आप को होली की हार्दिक शुभकामनाएं । ठाकुरजी श्रीराधामुकुंदबिहारी आप के जीवन में अपनी कृपा का रंग हमेशा बरसाते रहें।
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
आइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।
औ' हम ... खेलें 'दर्शन' होली।
माधव = बसंत
श्री = शोभा, ऐश्वर्य
ह्री = लज्जा
दर्शन = ?
दो विशिष्ट कवियों का उत्तर प्रत्युत्तर रोचक लगा ....
होली मुबारक .....!!
आपको होली की शुभकामनाएँ
प्रहलाद की भावना अपनाएँ
एक मालिक के गुण गाएँ
उसी को अपना शीश नवाएँ
मौसम बदलने पर होली की ख़शियों की मुबारकबाद
सभी को .
आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
रंग-पर्व पर हार्दिक बधाई.
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@ सञ्जय जी, नमस्ते की तर्ज पर फागुनस्ते. और होली नमः करके मुझे अपनी शुभकामनाओं से भिगो (नम कर) दिया.
कभी न होती अस्त 'नमस्ते'
सुप्रभात पर स्थिर सूरज.
आनंदम आनंदम फहरे
फागुन का वासंती ध्वज.
.
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@ निर्मला कपिला जी
चारों दोहों में किया, होली का गुणगान.
कपिला रंग में रंग दिया, निर्मल हुआ इसनान.
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@ सुज्ञ जी को ..
वैराग भाव से राग करे -
जर्जर जमीन को बाग़ करे -
'हृत-मोह' भेद न कछु जाने
'दर्शन'-ईंधन को आग करे.
@ शेखचिल्ली के बापू जी को
खामोशी-स्वर को पहचानो
या तुक्के में टिप्पण तानो?
क्या प्रश्न बापने पूछा है -
भैया से, या वो है बानो?
@ अमित जी को ..
'बरसे' - है मुझको इंतज़ार
वो रंग कृपा का फिर अपार.
इकलौती मुझ पर शर्ट बची
बस कृष्ण रंग का है करार.
@ रजनीश अली को ..
स्वीकार मुझे स्वीकार मुझे
मन में संचित अघ हुवें भस्म
देह की आयु है शतक वर्ष
सैनिक बलि देता व्यर्थ हर्ष.
@ दर्शन = ?
'दर्शन' से मिलता प्रश्न-चिन्न*.
दृष्टि को पकड़े हीर-जिन्न.
मेरे आका, मैं आतुर था..
पाने को दर्शन जो अभिन्न.
_________
*चिन्न = चिहन
आपको होली की शुभकामनाएँ
प्रहलाद की भावना अपनाएँ
एक मालिक के गुण गाएँ
उसी को अपना शीश नवाएँ
@ अनवर जमाल जी,
मन में क्या है ? ... है संशयमय.
मुख पर जो है ... वो है सुखमय.
इस सुखकारी ... वाणी को सुन
पाशित हो जाते ... हैं तन्मय.
मैं करता हूँ ईश्वर से अर्प.
होवे मुझको ना कोई दर्प.
पहचान सकूँ दो भेद दृष्टि
केंचुए रूप में हो ना सर्प.
वाह गुरूजी!!
काव्य और प्रतिउत्तर दोनो के साथ न्याय!!
भाव को अक्षुण्ण रखते हुए!!
क्या खुब मनी यह काव्य फुहार सी होली है।
अनेक भावों के रंगो से सजी आज रंगोली है।
काव्य की चर्चा करूं या दाद हाजिर जवाबी की?
कभी खेलती फाग लेखनी,कभी आग सी होली है॥
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@ दर्शन-प्राशन पता लिये
जो आये अतिथि सुन्दर द्वार.
क्षितिजा जी वन्दना अवस्थी
दोनों को बातों से प्यार.
___
क्षितिजा जी के ब्लॉग का नाम — बातें
वन्दना जी के ब्लॉग का नाम — अपनी बात
.
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@ सुज्ञ जी,
आपके स्नेह का संबल, ओढ़ता काव्य का कंबल.
बरसता जब जमाली जल, बचाता है यही उस पल.
निमंत्रण का खुला जब नल, सुझाता यही संक्षिप्त हल.
विचारक त्यागता जब मल, रूप रखता तभी जटिल.
आगमन हो अतिथि दल, अधर पर आये अमी-फल*.
_____
अमी-फल = मुस्कान
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देर से आने का फायदा यह हुआ कि होली के रंग में एक बार फिर सराबोर होने का अवसर मिला।
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@ देर आत राधारमण, होली रंग उतार.
सराबोर फिर भी भये, ये है उनका प्यार.
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बहुत सुन्दर ...होली की हार्दिक शुभकामनाएं
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