पागल पागल पागल
तीन तरह के पागल
एक वो
जो सुनता न किसी की
बस कहता,
हँसता
कर बात
बिना हँसी की.
दूजा वो
जो न सुनता न कहता
बस रहता
खोया खोया
लगा खोजने में खुद को.
तीसरा वो
जो बडबडाता
बिना सोच
कर देता
सोच प्रधान बातें
तब तर्कहीन बातें भी
तर्क की कसौटी पर
कसने को
व्याकुल हो
uthtaa है, वह पागल
पागल पागल पागल
तीन तरह के पागल.
1 टिप्पणी:
आपकी ये पोस्ट आज के ब्लॉग बुलेटिन में शामिल की गयी है.... धन्यवाद.... एक गणित के खिलाड़ी के साथ आज की बुलेटिन....
एक टिप्पणी भेजें