वात बात करती सपनों से
ऐसा हो निज राजमहल.
जिनमें द्वार कई छोटे हों
किरणों की हो चहल-पहल.
एक द्वार हो मुख्य, उसी पर
लटके परदा फूलों का.
खुल जाये मेरे आने पर,
देकर बस हलका झोंका.
बस वेणु आवाज़ गूँजती
हो कानों में मधुर-मधुर.
त्रसरेणु पग घुंघरू पहने
नाच करे छम-छम का स्वर.
दूर-दूर तक मेरी गाथा
गाती हो हर इक जिह्वा -
"देखो आयी राजमहल से
रानी के यश की गंधा."
त्रसरेणु — प्रकाश में दिखलाई देने वाले सूक्ष्मतम कण, धूलिकण, प्रकाश-वाहक कण, परमाणु.
यह कविता मेरे मन का संगीत है. अभी-अभी जयपुर दर्शन करके आया हूँ.
वहाँ हवामहल को देखकर मन मयूर नाच उठा. पिछले समय के तनावों से कुछ राहत मिली.
प्रकृति-दर्शन और संस्कृति का बोध कराने वाले स्थल मानस में बन रही आड़ी-तिरछी रेखाओं को अपने मौन-संवादों से पौंछ देते हैं.