रविवार, 21 नवंबर 2010

स्वर का थर्मामीटर


हमारे शरीर का तापमान जब अधिक होता है तब हम जान जाते हैं कि हमें ज्वर है, वातावरण कुछ गरम हुआ नहीं कि हम कहने लगते हैं कि 'उफ़ गरमी'. जब कोई कुपित होता है तब हम जान जाते हैं कि स्वर में कितना तापमान है. इस प्रकार आपने देखा कि शरीर का, जलवायु का और स्वर के तापमान का अनुमान लगाने में हम सक्षम हैं. स्वर की अपनी भी कुछ विशेषताएँ होती हैं — मधुर, कर्कश, कम्पित, भंग, अस्फुट...

स्वर के तापमान का सही-सही अनुमान लगाया जा सके. इसके लिये हम यदि एक चिह्नित पैमाना बना लें तो सुविधा होगी. 

स्वर का थर्मामीटर

| ............v ............ v ............. v ............ v ............ v ............. v ............ v ............ v ............ v ............. |
0 ........ 10 .......... 20 .......... 30 .......... 40 .......... 50 .......... 60 .......... 70 .......... 80 .......... 90 .......... 100
| ............^ ............ ^ ............. ^ ............. ^ ............. ^ ............. ^ ............. ^ ............. ^ ............ ^ ............. |

000 = निःशब्द स्वर [भय की पराकाष्ठा]
...........स्वर क्रियाहीन हो जाता है.
...........परिणाम ............[सदमा]

010 = भयातुर स्वर
..........स्वर सिमटने लगता है.
.........परिणाम ............[घबराहट]

020 = शांत स्वर 
........... स्वर अंगडाई लेता लगता है.
............परिणाम ............[संतोष] कई तरह के मानसिक तनावों से मुक्ति

030 = पिशुन स्वर
..........स्वर दबे पाँव चलता है [चुगली]
 ..........परिणाम ............[असंतोष] कई तरह के मानसिक तनावों से मुक्ति

040 = हास्य स्वर
..........स्वर भागता हुआ लगता है.
......... परिणाम ............[संतोष] कई तरह के शारीरिक तनावों से मुक्ति

050 = संयत स्वर 
...........स्वर संभलता हुआ-सा बढता है.
........ ...परिणाम ..........  [धैर्य] मनोबल बढ़ता है.

060 = व्यंग्य स्वर
...........स्वर आड़ा-तिरछा चलता लगता है.
............परिणाम .......... आड़े-तिरछे चलते स्वर को मद्यप-कथन जान लोग उसे हलके में लेते हैं.

070 = निंदा स्वर
..........स्वर फैलने लगता है [आलोचना]
...........परिणाम .......... विशेष पहचान बना पाने का सुख

080 = तिक्त व्यंग्य स्वर 
...........स्वर खिंचने लगता है [कटाक्ष]
............परिणाम ...........[जय-तृप्ति] जीतने की भूख की शांति

090 = अपशब्द स्वर
...........स्वर लडखडाता है[आक्रोश]
..........परिणाम ........... [अशांत मन]

100 = अवरुद्ध स्वर [क्रोध की पराकाष्ठा]
...........स्वर रुक जाता है.
...........परिणाम ...........सदमा या मूर्च्छा

इस पैमाने की अति निम्नावस्था का प्रभाव है निम्न रक्तचाप LBP [Low Blood Pressure]
और अति उच्चावस्था का प्रभाव है उच्च रक्तचाप HBP [High Blood Pressure] 

प्रश्न १ : कौन-सा स्वर सर्वश्रेष्ठ है और क्यों? 
प्रश्न २ : बाक़ी स्वर कब-कब इस्तेमाल में आते हैं? 

14 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

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एक बेहद खूबसूरत लेख के लिए हार्दिक आभार। संयत स्वर ही सराहनीय तथा अनुकरणीय है।

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सुज्ञ ने कहा…

गुरु जी,

यह तो भाव-अभिलेख है,क्या खूब स्वर का थर्मामीटर!! हमें तो, 020 = शांत स्वर ही भाता है, पर तापमान संयत स्वर और शांत स्वर के मध्य उपर नीचे होता है, कभी बुखार आ जाये सो अपवाद।

Majaal ने कहा…

हमारे हिसाब से तो स्वर वो ही ठीक है जो मौके के हिसाब से खुद को ढाल ले, जब जैसे तापमान की आवश्यकता हो वैसा संतुलन बना ले, बाकी भाषा हमारे लिए विचारों का आदान प्रदान का माध्यम है, तो जो स्वर सामने वाला सुलभता से समझ ले, हमारे लिए तो वहीँ श्रेष्ट ...
किताबी ज्ञान के मामले में तो मियां मजाल गँवार ही है ... उस लिहाज़ से आपकी जानकारी तो हमेशा दिलचस्प ही लगती है.. जारी रखिये ....

सञ्जय झा ने कहा…

SUPRABHAT GURUJI


ATI SUNDAR PATH - VIVECHAN......


PRANAM

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

आपने तो बहुत ही सार्थक और ज्ञानबर्धक लेख लिखा है.
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा. आपको बधाई और ढेरों शुभकामनाएँ.

बेनामी ने कहा…

भाई साहब कृपया प्रेम की परिभाशा बतायें प्रेम के क्याा गुण होते हैं मै मानवप्रेम की बात कर रहा हूं

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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प्रिय बेनाम टिप्पणीकर्ता
अच्छा हुआ आपने अपने पूछे सवाल में प्रेम को स्पष्ट कर दिया. अब मैं आपको शुद्ध मानव प्रेम की ही परिभाषा बताऊँगा.
मानव प्रेम — जो प्रेम मनु की संतानों से ही किया जाये.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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प्रिय विरेन्द्र जी,
आपकी 'बधाई और शुभकामनाएँ' मैं अपने भविष्य में किये जाने वाले साहित्यिक कार्यों के पीछे और आगे लगा लेता हूँ.
प्रिफिक्स और सफिक्स की तरह से, प्रत्यय और उपसर्ग की तरह से.
कुछ समय से मेरे ह्रदय में आपके लिये विशेष स्थान बन गया है. मैं जब भी आपको देखता हूँ मुख पर स्मिति आ ही जाती है.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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प्रिय संजय जी,
आशा है कि आप स्वस्थ हो गये होंगे. लगता है आपकी अभी भी तकनीकी समस्या दूर नहीं हो पायी है. जो भी स्थिति हो... लिखना.
पिछले दिनों मैं अपनी पाठशाला में अधिक समय नहीं दे पाया क्योंकि जब वैचारिक युद्ध छिड़ा हो तब कैसे छंद की बात करता, काव्य जगत में घूम भी नहीं पाया. फिलहाल भी वही हाल हैं. आशा है आप क्षमा भाव रखेंगे.
आपके शुभ-प्रभात का हमेशा मैं शुभ-रात्रि में जवाब दिया करता हूँ. ... मजबूरी है.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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मजाल जी,
वजा फरमाते हैं.
स्वर के ...'समय अनुसार प्रयोग में' आप कतई गँवार नहीं. तापमान जब वातावरण का घट-बड़ सकता है तब क्या हमारे स्वर का तापमान घटे-बड़े बिना रह सकता है? बिलकुल नहीं.
लेकिन तनावों से बचने की निरंतर कोशिश हमारे स्वास्थ्य को बरकरार रखती है. इसलिये ४० से ८० तापमान के मध्य स्वर वाले सामाजिक कहे जाते हैं. शांत स्वर वालों को समाज के लोग प्रायः साधु या भक्त मान लेते हैं.
और अपशब्द भाषी को असभ्य या जाहिल मान लिया जाता है.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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सुज्ञ जी,
ईश्वर करे आपको स्वर का बुखार कभी ना हो! शांत स्वर के लिये साधना की आवश्यकता है. निरंतर एक तापमान में रहना भी साधना है. वह भी आज़ के समाज में जहाँ कभी-भी कोई भी क्रोध का कारण बन जाता है.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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# संयत स्वर ही सराहनीय तथा अनुकरणीय है।

दिव्या जी,
@ संयत स्वर का अनुकरण केवल विवेक को ही साथ लेकर किया जा सकता है. आपने अपेक्षित उत्तर दिया.

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सुज्ञ ने कहा…

गुरुजी,

आपकी कृपा निरंतर बहती रहे तो हमारे लिये शीतल बयार है। फिर कैसे तापमान नियंत्रण के बाहर जा सकता है।
भारत भारती वैभव पर ज्वर विषाणु ने हमला किया था।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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सुज्ञ जी,
इस तरह के विषाणु देश के कौने-कौने में फ़ैल चुके हैं. ज्वर आना स्वाभाविक है.
हर बार सामान्य हो जाना - यह हमारा स्वभाव है.

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