बुधवार, 3 नवंबर 2010

मुस्कान मिष्टिका


कैसी लगी मिठायी चखकर
हमको ज़रा बताओ तो
लेकर अधरों पर हलकी
मुस्कान मिष्टिका लाओ तो. 

बहुत दिनों से था निराश मन
आस नहीं थी मिलने की.
लेकिन फिर भी मिला, मिलन
तैयारी में था जलने की. 

आप प्रेम से बोले — "सबसे
अच्छी लगी मिठायी यह".
यही श्रोत की थी चाहत
पूरी कर दी पिक नाद सह. 

मुरझाया था ह्रदय-सुमन 
खिल उठा आपका नेह लिये. 
बैठ गये खुद सुमन बिछाकर 
तितली से, सब स्वाद लिये. 

दीप जलाकर मेट रहा था 
ह्रदय-भवन की गहन अमा. 
किन्तु चाँदनी स्वयं द्वार पर 
आयी बनकर प्रिय...तमा. 

सवाल : कैसी लगी मिठायी चखकर हमको ज़रा बताओ तो ?

13 टिप्‍पणियां:

Majaal ने कहा…

तमा अमा का कविताई में,
किया आपने गहन सृजन,
हमने भी चखा तबीयत से,
की भूखे पेट न होवे भजन..

बहुत अच्छे, लिखते रहिये ....

सुज्ञ ने कहा…

तैयारी में था जलने की.……पिक नाद सह………सुमन बिछाकर तितली से, सब स्वाद लिये………प्रिय...तमा ?

बडे कन्फ़्युजिया गये है, ठंडा, गरम, रगीन है? क्या है? स्वाद का पता न चला? गुरू राज खोल दो।

ZEAL ने कहा…

.

देख मिठाई प्यार की , लक्ष्मी के मुस्काए अधर।
पर भाभी तो हैं पारखी , स्वाद चरपरा कहा मगर।
विद्यार्थी सभी भोले-भाले , सहमे-सहमे से डरे डरे।
सतरंगी मुस्कान गुरु की , रस- छंदों की कठिन डगर।
क्यूँ कठिन पूछते हो प्रश्न इतने, जिह्वाओं में हुआ समर।
पर प्रेम पगे इन मिष्ठानों में, मीठा ही है , कहें अधर।

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सञ्जय झा ने कहा…

bahut khoob.....


pranam.

Avinash Chandra ने कहा…

आपकी मिठाई सदैव स्वस्थ, मीठी, अनुपम व हितकारी है...जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया वो है...

दीप जलाकर मेट रहा था
ह्रदय-भवन की गहन अमा.

अनुपम अलंकार!!

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

..

मजाल जी आपके प्रतिउत्तरों में अपेक्षित प्रतिक्रिया का स्वाद मिलता है.

बहुत अच्छे, देते रहिये....

..

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

..

@ सुज्ञ जी,
कन्फ़्युजिआये नहीं. मेरे लिये स्वयं यह कविता व्याख्या करने की दृष्टि से कठिन है लेकिन फिर भी अपने उस भाव को खोलने की कोशिश करता हूँ जो स्वतः निर्मित होते चले गये.
_____________
मैंने अपने प्रिय को बातों की मिठाई खिलायी. और पूछा "मिठाई कैसी लगी? ज़रा बताओ तो!" "अपनी मुस्कान में उस मिठायी के थोड़े दर्शन तो कराओ. अधरों को कुछ फैलाओ तो."

कई दिन हो गये थे आपसे मिले हुए. मन निराश होकर बैठ गया था. मिलने की आशा समाप्त हो रही थी. लेकिन बुझते हुए दीपक को आपने ज्वलित कर दिया. मिलन आशा मरने ही वाली थी कि आपने आकर उसे बचा लिया.

आपने आकर प्रेम से कहा —"आपकी सबसे अच्छी मिठाई लगी."
मेरे कानों की यही इच्छा थी जो आपने कोकिल स्वर में कूक कर पूरी कर दी.

आपके प्रेम की बौछार से मेरा मुरझाया ह्रदय-सुमन खिल गया. लेकिन यह क्या ! उस सुमन को खिलाकर आप खुद उसपर तितली की भाँति बैठ गये और मेरे ह्रदय-सुमन के पराग [प्रेम] का स्वाद लेने लगे.

जिस समय मैं अपने ह्रदय रूपी भवन के गहन अन्धकार को दीप जला-जलाकर मिटा रहा था उसी समय चाँदनी ह्रदय-भवन के द्वार पर आकर प्रियतमा रूप में आकर खडी हो गयी.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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देख मिठाई प्यार की, लक्ष्मी के मुस्काए अधर।
पर भाभी तो हैं पारखी, स्वाद चरपरा कहा मगर।
विद्यार्थी सभी भोले-भाले, सहमे-सहमे से डरे डरे।
सतरंगी मुस्कान गुरु की, रस-छंदों की कठिन डगर।
क्यूँ कठिन पूछते हो प्रश्न इतने, जिह्वाओं में हुआ समर।
पर प्रेम पगे इन मिष्ठानों में, मीठा ही है, कहें अधर।

@ कविता में भावों की सुन्दर प्रस्तुति की है आपने.
इसे एकाधिक बार पढ़ा, पर मन नहीं भरा.
हे दिव श्री!
वास्तव में आपके उत्तर में केवल प्रयास ही नहीं प्रेम भी भरपूर भरा है.
____________
एक सच यह भी
आपके केवल लेख ही अच्छे नहीं होते.
आप कविता भी अच्छी करते हैं.
अब तक कई उदाहरण मिल चुके हैं.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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आपकी भाव कविता के सम्मान में ...... मेरी एक भाव कविता :

देखो वो आ रही बताने धीरे-धीरे मंद हँसी
'कैसी लगी मिठाई' बोली मुख में ही मुस्कान फँसी.
नहीं स्वाद मैं ले पायी मुस्कान-मिष्टिका तेरी का.
सभी स्वाद बेस्वाद हुए, मुख भी मेरा फीका-फीका.
स्वाद पूछने आयी हूँ, तेरे रसज्ञ श्रोतों से मैं.
कैसा है, किस तरह मिलेगा बतलावो उत्सुक हूँ मैं.
पर नत नयन उठे ना मेरे अगर कहीं ये उठ जाते.
उनको तो मिल जाता सबरस नया हमारे जल जाते.
बहुत समय पहले देखा था जिन नयनों को चिंगारी.
जिन नयनों से देखा वे ही नयन अभी तक हैं भारी.
पीड़ा तो होती है मुझको मर्यादित इस प्रीती से.
बोल नहीं पाता, वो चाहे निकल पड़े निज वीथी से.

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ZEAL ने कहा…

सुन्दर भाव कविता --आभार ।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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त्रुटि सुधार :
उनको तो मिल जाता सबरस नया हमारे जल जाते.

नया = नयन

@ उनको तो मिल जाता सबरस नयन हमारे जल जाते.

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सुज्ञ ने कहा…

भाव मिष्ठानो का लयबद्ध आदान प्रदान्।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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मिष्ठानो के इस लयबद्ध आदान-प्रदान के मध्य सारी मिठास सुज्ञ जी चुराए लिये जा रहे हैं.

अरे! पकड़ों उन्हें.

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