तारकों-सी तरुणियों के 
प्रभावान हृदयों को 
तुष्ट करने के लिये 
उनके निशा-से पीड़कों को 
दूर करने के लिये 
अमर्ष-हास रूप धर 
व नयनों की शिंजनी में 
तनाव तनिक दे दिया 
करते हुए विभीषिका 
न चाहत की मारने की 
निशा-सी व्यथाओं को 
मृषा की पियाओं को 
क्योंकि तारक-तरुणियों का 
निशा-सी व्यथाओं में 
अचल भान होता है. 
तब भाग निशा प्राची से 
छिप गयी प्रतीची में 
पर, ताव अधिक देने से 
खंडित हुयी रज्जु, चाप की. 
शिंजनी की संधि का 
प्रयास शुरू हो गया
किन्तु, हाय! व्यर्थ ही गया. 
हा! अंततः ग्रंथि लगी 
उषा-कमान-रज्जु में. 
अब रोती उडु-तरुणियाँ 
देख उषा नयनों को. 
[अमर्ष-हास — क्रोध की हँसी; मृषा की पिया — मिथ्या की प्रेमिका]
[विशेष बात — इसमें कर्ता का अंत में उल्लेख आया है.]
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