शनिवार, 17 मई 2014

गुजराती पट्ठा


उपयोगी थी भूमि
लगाने — ईंटों का भट्टा।


भीड़ लगी रहती थी
लेने — चट्टे पे चट्टा। 

इंतज़ार में जाने किसके 
रहता मन खट्टा। 

तिल-तिल चाट रहा दिन-घण्टे 
काला* तिलचट्टा। 

समय बड़ा बलवान
दरकती — भावशून्य सत्ता। 

उसी भूमि से बाहर आया 
पत्ते पे पत्ता। 

विषतरु मूल जड़ों में ठेले 
अमूल दूध मट्ठा। 

दशकों बाद मिला देश को 
गुजराती पट्ठा। 


*काला = समय का (समय रूपी)


2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत बढ़िया :)

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

पूरे देश स्वयं चुन लिया ये गुजरती पठ्ठा ....