गुरुवार, 27 सितंबर 2012

छंदशाला में आवेदन

श्लिष्ट वक्रोक्ति :
उलट-पलट कर भाव ने, लिया अंत संन्यास।   
छंद शर्त को मान के, सिकुड़े शैली* व्यास*।।

करुण हास्य [ठेस] :
प्रतियोगी बन आ गये, हम कविता के देस।
अब ना जाने क्या मिले, ठाले बैठे ठेस।।

काम्य भक्ति [आशा] :
'रविकर' से दोहे रचूँ, 'स्वर्णकार' से शेर।
मद 'नवीन' से छंद का, होगा देर-सबेर।।

चातकी शृंगार [सुन्दरता] :
मन की सुन्दरता छिपी, तन के भीतर जाय।
खोज करूँ अनुमान से, नित टकटकी लगाय।।

प्रतिक्रियात्मक दोहा :
पहलवान भी जानता, मिट्टी की सौंधास।
नित्य अखाड़े में करे, कुश्ती के अभ्यास।।


[27-09-2012]

सोमवार, 17 सितंबर 2012

मीत-पिता

ओ मीत पिता, दो मुझे बता
क्या दोष प्रीत में है मेरे?
क्यूँ नहीं पास आने देते
सविता को, अब भी घन घेरे.
मन मीत कल्पनाओं में आ
लिख देती हृत पर प्रेम-लेख.
फिर हृदय चुरा लेती मेरा
वह प्रेम लेख न सकूँ देख.
प्रतिकार आपसे लूँगा मैं
करवा तुमको अपराध-बोध.
मेरे औ' मेरे मीत बीच
शंका करके क्यूँ किया शोध?
कामुक कराल कहकर तुमने
मुझपर डाली है पंक-छींट.
उस पर भी हैं कुछ छींट गये
जो था श्रद्धा का हृत-किरीट.
शललित वचनों की शरशय्या
जिस पर लेटा हूँ निरपराध.
शश दे तुमने अपमान किया
मेरे यश में बन गया बाध.
मैं खुद को दंडित करने की
लेता हूँ निष्ठुर आज़ शपथ
मेरी पावनता बनी रहे
तुम भी हो जावोगे अवगत.
हीनोडुराज अम्बर तल में
शश पाकर भी ना हुआ हीन.
शोभा शशीश बनकर सर की
अस्थिर यश को भी किया पीन.
हूँ तोड़ रहा संबंध मीत
जोडूँगा अब संबंध मौन.
उदघाटित भी होगा तो तुम
पाओगे बस 'बहना' अमौन.
 

शनिवार, 1 सितंबर 2012

प्रियंवदा-प्रवास पर

तू ही मेरा मधुमेह है
तू ही मेरा अस्थमा
तू ही है पीलिया पियारी
तू ही नज़ला प्रियतमा.
 
तुममें जितनी भी मिठास थी
मैंने पूरी पान करी
हृदय खोलकर सुन्दरता भी
तुमने मुझको दान करी.
 
स्पर्श तुम्हारा मनोवेग को
शनैः शनैः उकसा देता
उस पर शीतल आलिंगन फिर
स्नेह वर्षण करवा लेता.
 
तुम हो नहीं, इसी से अब तो
समय-असमय खाता हूँ
हलक सूखता, श्वास उखड़ता
हृदय-काम ढुलकाता हूँ.
 
जितनी भी शर्करा आपसे
समय-समय पर पान करी
निकल रही निज संवादों में
श्वास तप्त के साथ अरी!