शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

मोदी का गुजरात

इंतज़ार के अंतिम पल में ... प्रिय की अप्रिय बात
"अभी नहीं आऊँगी" कहती ... प्रियंवदा अ'वदात.

कोमल शब्दों के भीतर में ... चुभन भरा बल'घात.
सात दिनों का विरह हमारा ... फिर बढ़ता दिन सात.

अमित-स्नेह ले गया खींचकर ... पहले बहिन बरात*.
दिल्ली-जयपुर, जयपुर-दिल्ली ... छोड़ चला गुजरात.

तब से अब तक ठिठुर रही है ... श्वासों की मम वात.
'शीत' कक्ष में घुसपैठी बन ... रहता है दिन रात.

आने को ऋतुराज द्वार पर ... स्वागत उत्सुक गात.
लेकिन प्रिय को रास आ गया ... मोदी का गुजरात.