सोमवार, 20 सितंबर 2010

हृल्लास-मूल

जीने से मरना लगे भला
कविता ने कवि को बहुत छला.
हिचकियाँ जिलाया करतीं जो
वो आज घोंटती स्वयं गला.


कारण कवि को कल्पना साथ
पाया कविता ने आज मिला.
पर कलम हाथ में नहीं देख
स्मृतियाँ कम्पित कर गईं हिला.


अब, हाय-हाय हृल्लास मुझे
मारेगा मेरे दोष दिखा.
क्या ह्रास करूँ हृल्लास-मूल
कौटिल्य भाँति मैं खोल-शिखा.