सोमवार, 12 नवंबर 2012

स्मृति-दीप

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
जला रहा हूँ आपके* बहाने  कुछ स्मृति-दीप ...
 

"चलो किसी बहाने सही
आप आये तो मिलने 'मुझसे'
-- ये भ्रम पाल रहा हूँ।"

"फिर से अपना परिचय मुझको
दे दो तो 'मैं जानूँ'
-- मानो कि भूल गया हूँ।"
 
"फिर वही बाल छवि कवि को तुम
दिखला दो तो 'दे दूँ सब'
-- ना समझो टाल रहा हूँ।"
 
"है ही क्या सोचोगे तुम 
देने को मुझपर 'तुमको'
-- तुमसे ही माँग रहा हूँ।"
 
"दे दो मुझको फिर शब्द वही 
जो बोला करते 'गुपचुप'
-- विनती कर माँग रहा हूँ।''
 
"ना जाने कौन तृप्ति होती है
इससे मेरे मन की
-- फिर फिर फिर माँग रहा हूँ।"
 
"हो प्रथम आप जिससे 'भैया' का
शब्द सुना ऐसा जो
-- कविता को प्राप्त हुआ हूँ।"

"गुड़िया आयी, चली गयी
है दण्ड सही - ईश्वर का
-- मन ही मन भोग रहा हूँ।"
 
"फिर चाह एक 'अमृता' बनी
उससे भी मैं ना हुआ धनी
-- अंतर्मन सुला रहा हूँ।"
 
"है मोह नहीं छूटता अभी
अब इंतज़ार है कल का
-- 'अमिलन' अभ्यास डाल रहा हूँ।"

"जाओ जल्दी से समझ
विज्ञान हमारे मन का
-- 'अवली' दीपक लगा रहा हूँ।"


*आपके = अमृता बिटिया