बुधवार, 4 मई 2011

कपोल-लली

खिलने में हो लावण्य भंग
दिखने में सबको लगे भली। 
पिय दर्शन से रतनार रंग
हो जाता कनक-कपोल-लली*

नत नयन मंद मुस्कानों की
अवगुंठन की कहलाति अली**
पुरुषों के भ्रमर-लोचनों को
लगती रसदार कपोल-कली । 

*कपोल-लली — लज्जा.
**अली — सखी.