शनिवार, 15 जनवरी 2011

अमरता का संगीत

अश्रुओं से जब मैं दिन-रात 
स्वयं को करुणामय संगीत 
सुनाया करता अब वो बात 
नहीं वैसी होती परतीत. 

आपका है मुझ पर अधिकार
किया क्योंकि तुमने उपकार. 
आपका मिलना बारंबार 
कल्पना में आ देना प्यार. 

अहा! तुम ही हो मेरे मीत 
नहीं भूलूँगा तेरी प्रीत 
मृतमय है मेरा तन-साज 
अमरता का हो तुम संगीत.