लम्ब उदर के हो जाने से
कर ना पाता हूँ जो आसन
उसे तुरत करती है बेटी
सुन्दरतम ये 'दर्शन प्रासन'*।
कर्मकाण्ड वाला क्रम पूजन
आता है किञ्चित जो रास न
उसे नक़ल करती है बेटी
मनमोहक ये 'दर्शन प्रासन'।
ये है उचित और वो अनुचित
देता रहता हूँ जो भासन*
उसे ध्वस्त करती है बेटी
चख-उद्घाटक 'दर्शन प्रासन'।
* प्रासन = प्राशन
* भासन = भाषण