शनिवार, 1 सितंबर 2012

प्रियंवदा-प्रवास पर

तू ही मेरा मधुमेह है
तू ही मेरा अस्थमा
तू ही है पीलिया पियारी
तू ही नज़ला प्रियतमा.
 
तुममें जितनी भी मिठास थी
मैंने पूरी पान करी
हृदय खोलकर सुन्दरता भी
तुमने मुझको दान करी.
 
स्पर्श तुम्हारा मनोवेग को
शनैः शनैः उकसा देता
उस पर शीतल आलिंगन फिर
स्नेह वर्षण करवा लेता.
 
तुम हो नहीं, इसी से अब तो
समय-असमय खाता हूँ
हलक सूखता, श्वास उखड़ता
हृदय-काम ढुलकाता हूँ.
 
जितनी भी शर्करा आपसे
समय-समय पर पान करी
निकल रही निज संवादों में
श्वास तप्त के साथ अरी!