रविवार, 6 फ़रवरी 2011

शारद-हंस


चाहता हूँ आपस में आप 
पास आकर दोनों मिल जाओ.
अरे! तुम रंग रूप से नयी 
विश्व को शीतलता पहुँचाओ. 

निशा के सुन लो कर-भरतार 
दिवाकर को करना लाचार. 
आप से लेकर शीतल प्यार 
उष्णता का कर दे परिहार. 

मिलो तो लागे नया बसंत 
बिछड़ जावो तो भी दुःख अंत 
हुवे, लौटे मुख पर मुस्कान 
देख तुमको खिल जावें दंत. 

सुन्दरी लगने लागे लाज 
राजने लागे सर अवतंस. 
नष्ट होवे मानस का क्रोध 
तैरने आवे शारद-हंस. 



कवि कोटियाँ - 4

रचना की मौलिकता कि आधार पर कवि के चार भेद हैं : 
१] उत्पादक कवि — अपनी नवीन उदभावना के आधार पर मौलिक रचना प्रस्तुत करता है. 
२] परिवर्तक कवि — दूसरे कवियों की रचना में कुछ उलटफेर करके अपनी छाप डाल उसे अपनी रचना बना लेता है. 
३] आच्छादक कवि — कुछ साधारण हेर-फेर से ही दूसरों की रचना छिपाकर उसे अपनी ही कहकर प्रसिद्ध कर देता है. 
४] संवर्गक कवि — प्रकट रूप से खुल्लमखुल्ला दूसरे के काव्य को अपना कहकर प्रकाशित करता है. 

इन कवियों में वास्तव में उत्पादक को ही कवि मानना चाहिए, अन्य तो नकलची, चोर या डाकू हैं, कवि नहीं.  

फिलहाल इतना ही, अन्य भेद अगले अध्याय में ...