मंगलवार, 16 सितंबर 2014

संन्यासी सुत

सौंदर्य सुधा घट में भरते 
हे देव, आप क्योंकर हाला 
क्यों बना रहे कोमल तन को 
बालाओं के बंकिम भाला। 


था हुआ कभी आहत मैं भी 
है पीर अभी उसकी भारी 
मैं निर्माता बन हटा तभी 
तो लगा आपने ली बारी। 


अब तलक ओट से देखी थी 
अवगुंठनमय अवनत नारी 
विपरीत लगा प्रतिघात भवन 
में देखी जब सूरत प्यारी। 


हे देव, जानता हूँ मैं सब 
तुममें मुझमें है भेद बहुत 
तुम संयम के बुत हो तो मैं 
संन्यासी संयम का हूँ सुत।