बुधवार, 31 मार्च 2010

नियोग

वर पञ्च शरों सह वनिता के
उर अनल-अयन में घुसकर के
निज के प्राणों का दाँव लगा
तज पञ्चतत्व को सौंप गया.

विधवा होकर कर सौंप जिसे
दे, ऐसा कोई और मिले
दे-वर विधवा होने पर भी
उत्तम-कुल का वर-बरात मिले.

वह अग्रज हो वा अनुज भई
या उत्तम कुल का इतर सही.
उसको ही देवर कहते, जो
आपात काले सहयोग करे.

जो भोग न हो संयोग न हो
जो चिर कालीन वियोग न हो.
सुत पाने की इच्छा भर हो
उसे पाप नहीं नियोग कहो.

(नियोग — एक वैदिक विधान, परिस्थिति विशेष में)