गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

कौमुदी !

अय उद्यान की प्रिये !
बैठ आ मधु पियें !!
प्रेम से दो पल जियें !
कौमुदी, कर दीजिये।।
 
आइये इत आइये !
उर-पुष्प बैठ जाइये !!
तनु पंख खोल दीजिये !
तुम वक्ष के, मेरे लिए।।
 
निहार लूँ, मैं दृष्टि से
सौन्दर्य देह-यष्टि का।
मैं सदा-सदा के लिये
फिर बाँध लूँगा मुष्टिका।।