रविवार, 14 मार्च 2010

सौंदर्य उपासना

उठ गयी आज जल्दी सजनी
सब केश खुले से खुले बिखरे
सो रही उसी पर थी रजनी.

कर ग्रंथि केश मुख धोन चली
मद नयन भरे से भरे दिखते
धो रही शीत चख कुंद कली.

(जब मैंने प्रातः उठने पर सौंदर्य को मुख धोते देखा)