गुरुवार, 12 अगस्त 2010

केश-विन्यास

चोरी-चोरी केशकार से
करवा लेती है विन्यास
केशों का, जो बिखर गये थे
आगे उसके मुख के पास.


पता चलाने पलक ओट से
देख रहे हैं मेरे दास
नयनों में जो छिपे हुए थे
लेकर करुणामय विश्वास.


मारुत-नापित ही सविता के
केशों का करता विन्यास
पता लगाया तब नयनों के
तारों ने, जब हुआ निराश.

[केशकार — केश संवारने वाला या वाली, नाई;
मारुत — वायु, हवा;
नापित — नाई, केश काटने-छाँटने-संवारने वाला;
सविता — सूर्य
विन्यास — सँवारना]


प्रसंग :
कवि एक समय प्राकृतिक छटा के सम्मुख बैठा विचारमग्न था कि सविता के सौन्दर्य का क्या रहस्य है? वह प्रातः और सांय क्यों इतनी सुन्दरता को प्राप्त हो जाती है? वह इन्हीं प्रश्नों के समाधान के लिये सुबह-शाम सविता को निहारता रहता. तब उसे दिन ज्ञात हुआ कि :


व्याख्या :
जब भी सविता मुख के पास उसके केश (घटाएँ) फैलकर उसके सौन्दर्य को छिपाते हैं तब-तब सविता केश सँवारने वाले नापित (मारुत) के पास अपने केशों के प्रसाधन हेतु जाया करती है.
इन बातों को जानकार कवि के दास (नयनों के तारक) अपना कर्तव्य समझकर पलक की ओट में कारुणिक मुद्रा में इस  विश्वास से खड़े रहे कि अब सविता सौन्दर्य का रहस्य उदघाटित हो जाएगा. अंततः नयन तारक अपने अभियान में सफल हुए.
नयन-तारकों को पता गया कि मारुत-नापित ही सविता के केशों को संवारकर उसके सौदर्य में वृद्धि करता है. वही घटाओं को इधर-उधर करके प्रातः और संध्या को सविता-सौदर्य में प्रतिदिन भिन्नता लाता रहता है.