सोमवार, 18 जनवरी 2010

आँखें

काट लिए हैं दिवस और न जाने ही कितनी रातें.
नयन तुम्हारे देखन को उत्सुक हैं मेरी दो आँखें.
कभी आप नयनों को अवनत कर लेते हो शरमाते.
और कभी मेरी मर्यादा खोल नहीं पातीं आँखें.
एक बार ही मिलीं हमारे नयनों से तेरी आँखें.
पहले स्वागत नहीं किया अब करने को उत्सुक आँखें.
हाय! सुरक्षित हैं क्या तेरी वो प्यारी-प्यारी आँखें.
किवा ग्रस्त घावों से हैं वे बाण छोड़ने से आँखें.

(प्रेरणा: मंदाक्ष)
समर्पित: सभी विस्फारित नयनों वालों को