रविवार, 14 दिसंबर 2014

बिंदु

छीन कर रेखा से कुछ अंश
बना दूँगा उसके सब ओर
गोल घेरे में वृत्तायन
बढ़ाउँगा उसमें निज वंश॥
 
बिंदु को रेखा से कर हीन
स्वयं में कर लूँगा मैं लीन
बिंदु से बिंदू एक नवीन
बनाउँगा होकर लवलीन॥
 
बिंदुओं को आपस में एक
कभी कर दूँगा फिर से रेख
बिंदुओं से रेखा का मेल
कराकर खेलूँगा मैं खेल॥
 

शनिवार, 6 दिसंबर 2014

सो जा बिटिया रानी!

 
सो जा बिटिया रानी !
आँखों में आई रहने को सपनों की सेठानी। 
पलकों का पल्लू करने की माने रीति पुरानी।
आगे-पीछे घूम रही है थपकी नौकर-रानी।
सो जा बिटिया रानी, सो जा बिटिया रानी।
 
 
प्रेरणा स्रोत : आदरणीय रंगराज अयंगर जी