मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

"तुमसे ही तो मेरी चाँदनी"

चाहा मन में बात करूँगी 
भैया से विवाद करूँगी 
चल दी पिकानद में विभावरी 
चन्दा से मैं आज़ लडूँगी. 


"क्यों मगन हो सोते रहते 
बहना से कुछ भी न कहते 
बस देते रहते भाभी की 
चिर नूतन अवदात चाँदनी."


"मैं हारूँगी या वो हारें 
आज़ शुभ्र लगते हैं तारे 
किसकी जीत सुनिश्चित होगी 
मेरी या भैया चंद प्यारे."


"पर पहले की तरह सदा वे 
फिर से हार स्वयं न जावें 
पूरे होकर धीरे-धीरे 
स्वयं नाश अपना न कर लें."


"भय लगता है भूल करूँगी 
भैया से अन्याय करूँगी 
पर फिर भी भैया यही कहेंगे 
'तुमसे ही तो मेरी चाँदनी'."