गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

कल्पनाशक्ति तेज़ करा लो.S..S...S....

नहीं कहूँगा 
मैंने कोई 
नहीं किया अपराध. 
किन्तु आपको 
सुनना होगा 
मेरा यह संवाद -
"एक पक्ष का प्रेम सदा 
होता आया है पाप. 
पक्ष दूसरे के भी मैंने 
कभी सुने पदचाप."

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

पल्लव का पुंज


सुना मैंने, पल्लव का पुंज 
बनाया था जो मेरे लिये. 
उसे तुमने ही अपने पास 
रख लिया गलने के ही लिये. 

दीप वाले काले तम में 
छिप गये तुम पल्लव के पुंज 
हमारी यादों को तुम त्याग 
चल दिए मिलने को पिक-कुञ्ज. 

वही केवल पल्लव का पुंज 
हमारे लिये बचा अवशेष. 
आप तो रहते हो स्वच्छंद 
हमारे लिये बना परिवेश. 

रविवार, 19 दिसंबर 2010

कर-अली


कर क्या देखो वातायन से 
इस घर के घुप्प अँधेरे में. 
क्या त्याग दिया तुमको रवि ने 
जो आयी पास तुम इस तम के. 

कर बोली - तुम पहले बोलो, 
क्यों बैठे हो आकर तम में. 
क्या छोड़ दिया है साथ तुम्हारा 
किसी वंचक-सी, सहेली ने? 

हाँ कहकर मैंने धीरे से, 
गरदन को अपने झुका लिया 
वो भाग गयी है छोड़ मुझे, 
ना है कोई मेरी और अली. 

कर बोली - मेरे स्वामी ने 
बनने को हेली बोला है. 
तुम भूल जाओ उस पल को 
जिसमें कि त्वं मन डोला है. 

है अनंत अली मेरे पिय की, 
निज देतीं सबको उजियाला. 
उर-व्यथा भार हलका करके, 
स्नेह देतीं हैं भर-भर प्याला. 

[कर-अली — किरण सखी ]

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

हवामहल


वात बात करती सपनों से 
ऐसा हो निज राजमहल. 
जिनमें द्वार कई छोटे हों 
किरणों की हो चहल-पहल. 

एक द्वार हो मुख्य, उसी पर 
लटके परदा फूलों का. 
खुल जाये मेरे आने पर, 
देकर बस हलका झोंका. 

बस वेणु आवाज़ गूँजती 
हो कानों में मधुर-मधुर. 
त्रसरेणु पग घुंघरू पहने 
नाच करे छम-छम का स्वर. 

दूर-दूर तक मेरी गाथा 
गाती हो हर इक जिह्वा -
"देखो आयी राजमहल से 
रानी के यश की गंधा." 

त्रसरेणु — प्रकाश में दिखलाई देने वाले सूक्ष्मतम कण, धूलिकण, प्रकाश-वाहक कण, परमाणु. 

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

जलन

सहसा आये थे ...... देह साज 
मिलने को, जाने कौन व्याज. 
अधिकार जमाने .... पुरा-नेह 
मानो करते थे .... मौन राज. 


फिर भी .. कर व्यक्त नहीं पाए 
निज नेह,.. मौन के मौन रहे. 
कब तलक रहे जीवित आशा 
मेरी, .. इतनी चुप कौन सहे? 


चुप सहने को .. मैं सहूँ सदा 
पर कैसे छलमय मान सहूँ? 
तुम करो बात जब दूजे से, 
मैं जलूँ, 'जलन' किस भाँति कहूँ?