शनिवार, 13 अगस्त 2011

जिसके सहोदरा 'बहन' नहीं होती वह कभी 'प्रेम' को सही ढंग से पहचान नहीं पाता !

सुमन, तुम मन में बनी रहो!
आकर अंतर में मेरे तुम खिलो और मुसकाओ.
स्वर्ण केश, स्वर्णिमा वदन पर मुझको हैं मन भाते.
वचन आपके सुनकर मेरे कान तृप्ति हैं पाते.
सुनो दूसरी गुड़िया प्यारी, पहली मुझे भुलाओ.
जिधर कहीं दुर्गन्ध लगे नेह देकर के महकाओ.
सुमन, तुम मन में बनी रहो!
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