बुधवार, 25 जून 2014

आखेट कुशलता

तुम चले, चला धीरे-धीरे
मन मेरा चुपके से पीछे। 
तुम रुके, नहीं रुक सका हाय
संयम मेरे मन को खींचे।
क्यूँ रुके, नहीं तब था जाना
अब जान गया चख हैं तीखे।
रुक जाता तो मन मर जाता
आखेट-कुशलता बिन सीखे।