शनिवार, 28 जुलाई 2012

दिक् शूल

सोम-शनि है प्राची प्रतिकूल
दिवस रवि का उसके अनुकूल.
प्रतीची में मंगल-बुध जाव
शुक्र-रवि में होवें दिकशूल.
उदीची में बुध-मंगल भार
शुक्र शुभ होता शुभ गुरुवार.
अवाची को जाना शनि-सोम
गुरु को चलना शकुन-विलोम.
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उदीची - उत्तर दिशा
अवाची - दक्षिण दिशा
प्राची - पूर्व दिशा
प्रतीची - पश्चिम दिशा
मैं इस कविता को देना नहीं चाहता था.... क्योंकि अब मैं इस विचारधारा से बिलकुल सहमत नहीं हूँ कि 'दिकशूल' जैसा कुछ होता है.... ये कोरा अंधविश्वास है... जब ये रचना बनायी थी. तब मैं दिकशूल से बहुत प्रभावित रहता था.

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

तुम पुष्प भाँति मुस्कान लिये

तुम धरा धीर धारो बेशक 
बदले में ना कुछ चाह करो. 
ये धरा सहिष्णु स्वभावी 
केवल स्व-गुण प्रवाह करो. 

तुम रहो पपीहे-सी प्यासी 
बदले में ना कुछ आह करो. 
ये बहुत अधिक स्वाभिमानी  
वारिवाह की ना वाह करो. 

तुम करो स्वयं को रजनीगंध 
बदले में ना अवगाह करो. 
ये गंध देखती नहीं अमा, 
राका की अब ना राह करो. 

जीवन-कागज़ कोरा कर लो 
तो उसको जबरन नहीं भरो. 
यदि ज्ञान-बूँद की भाँति बनो 
तो एकाधिक मन शुक्ति करो. 

चिड़ियों-सा चहको मन-आँगन 
आखेटक दृग से नहीं डरो. 
यदि निद्रा में लेना सपना, 
तो भोर-नींद की चाह करो. 

[आलोकिता जी के लिए लिखी कविता जो मेरे संग्रह से छिटकी पड़ी थी। आज शामिल कर रहा हूँ ]

बुधवार, 18 जुलाई 2012

कविता-चेरी

आँखें तलाशती हैं मेरी
कविता के लिये नई चेरी
आ बन जावो प्रेरणा शीघ्र
मत करो आज़ बिलकुल देरी.
है कौन प्रेरणा बने आज़
मैं देख रहा हूँ सभी साज
बैठे हैं अपने गात लिये
पाने को मेरा प्रेम-राज.
आकर्षित करने को सत्वर
कुछ नयन कर रहे आज़ समर
शर छूट रहे हैं दुर्निवार
कुछ डरा रहे हैं लट-विषधर.
मुझको चूमो कह रहे गाल
मुझको छूवो कह रही खाल
पग दिखा रहे हैं मस्त चाल
- ये उलझाने को बिछा जाल.
कुछ कटे हुए केशों की भी
कर रहे हैं इतनी देखभाल
अंगुली फेरें, मुझको लेकिन
फण कटे व्याल लग रहे बाल.
जिन पर वसनों की कमी नहीं
वे वसन दिखाते सभी आज़
आकर्षक बनने को तत्पर
कुछ दिखा रहे हैं छिपी-लाज.
सुन्दर होना सुन्दर दिखना
ये तो सबसे है भली बात
पर मर्यादा भी रहे ध्यान
वसनों के अन्दर रहे गात.
अब भी तलाशती हैं आँखें
कविता के लिये नई चेरी
जो दे कविता को नई दिशा
वो बन जावे आकर मेरी.
 
*कविता-चेरी = 'प्रेरणा' से तात्पर्य
दुर्निवार = लगातार, जिसे रोकना कठिन हो.

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

शिकायत

"आऊँगा"
कह कह कर
क्यों रह रह जाते हो
आपके लिये रिक्त करती हूँ घर
पर तुम ना आते हो.
"गाऊँगा"
कह कह कर
चुप क्यों रह जाते हो
आपके लिये बाँधती हूँ नूपुर
पर तुम ना गाते हो.
"जाऊँगा"
कह कह कर
तुम क्यों ना जाते हो
आपके लिये प्रशस्त करती हूँ पथ
पर तुम घबराते हो.