गुरुवार, 6 जून 2013

भव्य अनुभूति

 
शब्द नहीं हैं सुख वर्णन के
नित्य ह्रदय में उत्सव महके
मुख-द्वार पर सभी स्वरों के
बारी-बारी अक्षर चहके।
सपना नहीं सत्य समझते
लाल हुई हैं आँखें मलते
प्रेम विटप की बाँहों पर अब
गोदी वाले पुष्प निकलते।
जान गया मन रहस्य पिता का
संतानों से अपनेपन का
अर्थ ढूँढ लेता हूँ अब तो
हर किलकारी हर रोदन का।