रविवार, 22 मई 2011

'हाँ' 'नहीं' मगर...

ओ प्रकृति प्रेमि, प्रियतमे अंक! 
मुझको सबसे प्रिय लगे पंक.
खिलता उसमें से ही सरोज
रमणीक वारि भी हुआ रंक. 

ओ ग़ज़ल प्रिये, गज गमन चली! 
मुझको कविता ही लगे भली. 
चलती निज कविता तुरग चाल 
भूलोगी चलना ग़ज़ल-गली. 

चन्दन सुगंध लेने वाली ! 
मेरी पसंद लिपटी व्याली. 
व्याली पसंद आनंद गंध 
आनंद गंध सबसे आली. 

संयाव आपका मधुर भोज 
पायस भोजों में महा भोज. 
घृत मूल मिला इसमें रहता 
पय देख याद आता पयोज. 

"किसका स्पर्श सबसे सुन्दर?" 
ये प्रश्न आपको विचलित कर 
क्यूँ गया, मुझे संकोच हुआ 
"क्या है समीर?".. 'हाँ' नहीं' मगर.
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शब्दार्थ : 
वारि - जल
व्याली - नागिन
पायस - खीर 
संयाव - हलवा