सोमवार, 16 जून 2014

उठो अंशुमान !

प्रकाश औ' प्रकाशिका 
कर्तव्य साथ छोड़कर 
दे रहे थे देह को 
विराम प्राचि-गेह में। 

प्रकाश ताप व्याज से 
घटा-विधान ओढ़कर 
ले रहा था सुबकियाँ 
अश्रुओं को छोड़कर। 

मलिनता मिटाने को 
खींचती घटा-विधान 
धीरे से खाँसती, पिय 
आई, उठो अंशुमान !