शनिवार, 22 मई 2010

कवच [एक चित्र काव्य]

नयन चार करना नवीनता
ही क्षणिक पहला पागलप
हीं मिलन को आती तन्वी
रेतीला होता मेरा म
मेरे आकर पास कल्पना
र देती है मुझको काय
सुरबाला को देखूँ अपल
त्कंठित रहता है अंत
कोस रहा है कब से सच्चा
ख से शिख तक तुमको निज म
गी को आकर कौन बुझा
मिलन को उत्सुक मेरे नयन.

शब्दार्थ :
तन्वी मतलब कृशकाय किशोरी, दुबली-पतली बाला.

पिछली बार 'ढाल' नामक कविता चित्र काव्य के रूप में दी थी लेकिन किसी ने उसमें चमत्कार ढूँढने में रुचि नहीं दिखायी, कहीं इस 'कवच' का भी वही हाल ना हो. इसलिये कुछ संकेत किये देता हूँ.
दो वाक्य कविता को चारों ओर से घेरे हुए है.
एक वाक्य 'नयन चार करना नवीनता' बायें से दायें है और वही नीचे से ऊपर भी बनता हुआ दिखाई देगा.
दूसरा वाक्य 'मिलन को उत्सुक मेरे नयन' न केवल अंत में आया है बल्कि वही वाक्य नीचे से ऊपर जाता हुआ [सभी वाक्यों के अंत में] प्रतीत होगा.
मैं इस बात से अवगत हूँ कि इन काव्य खेल-तमाशों के प्रति रुचि काफी घट चुकी है. फिर भी मुझे जो आता है मैं तो वही खेल दिखा सकता हूँ. ]
अगली कविता अकल्पित छवि 'दिव्या जी' पर