रविवार, 30 जनवरी 2011

संबंध क्लिष्ट


फिर से कर जाना चाहता है अंतर, मौन में प्रविष्ट. 
आचरण जब होने लगता है अति-शिष्ट या विशिष्ट. 
अथवा तनावों के मध्य होने लगता है संबंध क्लिष्ट. 
निर्वाह न कर सकेगा स्नेह का अंतर हमारा, मेरे इष्ट. 
करना पड़ता है विवशता में एकपक्षीय व्यवहार का अनिष्ट. 
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कवि-कोटियाँ - 3

प्रतिभा और व्युत्पत्ति के दोनों ही के आधार पर राजशेखर [संस्कृत काव्यशास्त्री] ने तीन भेद किये हैं. 
[१] शास्त्र कवि — इस तरह के कवियों में अध्ययन और ज्ञान अधिक रहता है, किन्तु रस और भाव की सम्पत्ति अधिक नहीं रहती. 
[२] काव्य कवि — इस तरह के कवियों में में कवित्व अधिक रहता है, अध्ययन और ज्ञान उतना नहीं रहता जितना कि शास्त्र कवि में रहता है. 
[३] उभय कवि — इस तरह के कवियों में दोनों ही बातों का समान महत्व रहता है. 

........ इस तरह उभय कवि सर्वोत्तम और शास्त्र कवि केवल अपनी ही दृष्टि में उत्तम समझे जाते हैं शास्त्र कवि आत्ममुग्ध अधिक होते हैं. हमेशा छंद और काव्य-गुणों व दोषों में उलझे रहकर कविता का रसपान न स्वयं कर पाते हैं न ही रसिकों को लेने देते हैं. फिर भी इनकी अहमियत शास्त्रीय ज्ञान के कारण विद्वानों में बनी रहती है. काव्य कवियों को चिंता नहीं होती कि वे अपने भावों को किस छंद में ढाल रहे हैं. मंजे हुए इस तरह के कवि स्वतः ही अपने भावानुकूल छंद का चयन कर अपनी अभिव्यक्ति-ऊर्जा रेचित करते हैं. 

[ कवि कोटियों का अन्य आधारों पर अगले अध्याय में विश्लेषण किया जाएगा.  ]


सोमवार, 24 जनवरी 2011

– : स्मृति आज़ कर रही तुमसे नेह : –

त्रय दिवस बीतने बाद प्रिये! 
कर रहा स्मृति को लिपिबद्ध. 
मैं शुष्क प्रेम अपने वाले 
कुछ तत्त्व दिखा देता हूँ सद्य. 

त्वम वस्त्र पुराने नवल सभी 
कर-अधर द्वयं के संगी हैं. 
एकांत, श्रांत, मन भ्रांत कभी 
होता तो मोचन अंगी हैं. 

तलहटी पाद पीड़ा में भी 
तुम हुए समाहित सेवा से. 
स्मृति आज़ कर रही तुमसे नेह 
जुट गये विषय अच्छे-खासे. 
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कविता की पृष्ठभूमि : 
मेरी पत्नी को मुझसे शिकायत रही कि मैंने कभी कोई कविता उनपर नहीं लिखी. आज़ मुझे एक डायरी मिल ही गयी जिसमें उनपर कुछ ऐसा लिखा था जो उनकी दृष्टि से छिपा रह गया था. बात उस समय की है जब वे किसी कारणवश विवाह के प्रथम वर्ष में ही अपने जन्म-घर गई हुई थीं. तीन दिवस बीत चुके थे, मन मंद-मंद कराह कर रहा था. तलवों में हो रही पीड़ा किसी की स्मृति का संबल लिये थी. 

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कवि-कोटियाँ - 2

काव्य सेवन के आधार पर भावक या आलोचक के चार भेद माने गये हैं. आरोचकी, सतृणाभ्यवहारी, मत्सरी और तत्त्वाभिनिवेशी. 

आरोचकी — 
वह है जिसे अन्य किसी का काव्य अच्छा नहीं लगता. 

सतृणाभ्यवहारी — 
वह है जो समस्त कविता कही जाने वाली छंदोबद्ध रचना को पढ़ता है. 

मत्सरी — 
वह है जो दूसरों के उत्तम काव्य को न पढ़ता है और न सुनकर प्रशंसा करता है, केवल दोषों को देखता है. 

तत्त्वाभिनिवेशी — 
वह है जो काव्य के तत्त्व में प्रवेश कर उसे पहचानता और ग्रहण करता है. 


शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

कहो कुछ बेशक आप नहीं


इस जीवन की यही विषमता
साफ़ कहो तो मिले विफलता
हम तुमसे कुछ कहें —
फेरते मुख को आप कहीं
कहो कुछ बेशक आप नहीं .

छूट गया मिलना-जुलना सब
पुनः मिलेंगे शायद न अब
जितना तुमसे दूर चलूँ
आ जाता लौट वहीँ
कहो कुछ बेशक आप नहीं .

धुरी आप मेरे चिंतन की
भले न हो किञ्चित निज मन की
एक रूप में रूप सभी —
दिख पड़ते मुझको यहीं
कहो कुछ बेशक आप नहीं .

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कवि-कोटियाँ 

क्षेमेन्द्र ने भाव-अपहरण करने वाले छह प्रकार के कवियों का उल्लेख किया है. 
कवि का उपकार करने वाली कारयित्री या रचनात्मक प्रतिभा तीन प्रकार की होती है :

सहजा, 
आहार्या और 
औपदेशिकी. 

इसी के आधार पर कवियों की तीन कोटियाँ निश्चित की जा सकती हैं. 

पहली 'सारस्वत', 
दूसरी 'आभ्यासिक' और 
तीसरी 'औपदेशिकी'. 

सारस्वत — इस कोटि में वे कवि आते हैं जिनकी कवित्वशक्ति 'सहजा' प्रतिभा के द्वारा पूर्वजन्म के संस्कारवश कवि-कर्म में प्रवृत्त होती है.  

आभ्यासिक — इस कोटि में वे कवि आते हैं जिनकी कवित्वशक्ति आहार्य [अर्जित] बुद्धि के द्वारा इसी जन्म के अभ्यास से जाग्रत होती है. 

औपदेशिक — इस कोटि  के कवि वे हैं जिनकी काव्य रचना उपदेश के सहारे होती है. 


शनिवार, 15 जनवरी 2011

अमरता का संगीत

अश्रुओं से जब मैं दिन-रात 
स्वयं को करुणामय संगीत 
सुनाया करता अब वो बात 
नहीं वैसी होती परतीत. 

आपका है मुझ पर अधिकार
किया क्योंकि तुमने उपकार. 
आपका मिलना बारंबार 
कल्पना में आ देना प्यार. 

अहा! तुम ही हो मेरे मीत 
नहीं भूलूँगा तेरी प्रीत 
मृतमय है मेरा तन-साज 
अमरता का हो तुम संगीत. 

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

मौन रहने से बिगड़ गई

मौन रहने से बिगड़ गई 
बात, जो चार दृगों के बीच 
नेह की करती थी सृष्टि 
देह से दूर रही दृष्टि. 

कौन दोनों के बीच नयी  
प्रेम की करवाये संधी*.
ग़लतफहमी दोनों के बीच 
फैसला करती, बन अंधी. 

न्याय पावेगा सच्चा कौन 
खड़े हैं दोनों ही निर्दोष. 
दंड भुगतेगा इसका कौन 
छिपे हैं दोनों के ही कोष. 

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संधी — सही रूप 'संधि' है. 

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

सचमुच यह तो अन्याय बड़ा

सचमुच यह तो अन्याय बड़ा 
कोमल हृत भी हो गया कड़ा
जिसमें निवास कर विनय मरा 
सौभाग्य किवा दुर्भाग्य बड़ा. 

जो नयन नील नभ में घूमे 
वे आज़ देखते शुष्क धरा 
हो जा यौवन अब जरा युक्त 
नयनों को खलता रंग हरा. 

यदि कर सृजन से करें दगा 
तो होगा कवि का कौन सगा. 
नूपुर को तेरे जंग लगे 
यदि पग नर्तन से करें दगा. 

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

सूर्यग्रहण

"तू ज़्यादा मत इतराया कर
तू मेरे पास ना आया कर."
सविता कहती — "हे धृष्ट मयंक! 
क्यों लगते हो तुम मेरे अंक. 
सारी की सारी आभा निज 
ले लेते हो कर देते रंक. 
न स्वयं किसी को बतलाते -
'क्या लिया आपने कर रातें'
मुझको अपनी बातों से तुम 
बहकाते, निज आभा पाते 
पर सच है, सच्ची नेक बात 
सम्मुख सबके आयेगी ही 
बोलो ना बोलो मेरी जय 
आगे पूजी जाऊँगी ही."