मंगलवार, 4 जनवरी 2011

सूर्यग्रहण

"तू ज़्यादा मत इतराया कर
तू मेरे पास ना आया कर."
सविता कहती — "हे धृष्ट मयंक! 
क्यों लगते हो तुम मेरे अंक. 
सारी की सारी आभा निज 
ले लेते हो कर देते रंक. 
न स्वयं किसी को बतलाते -
'क्या लिया आपने कर रातें'
मुझको अपनी बातों से तुम 
बहकाते, निज आभा पाते 
पर सच है, सच्ची नेक बात 
सम्मुख सबके आयेगी ही 
बोलो ना बोलो मेरी जय 
आगे पूजी जाऊँगी ही."