तुम धरा धीर धारो बेशक 
तुम रहो पपीहे-सी प्यासी
तुम करो स्वयं को रजनीगंध
जीवन-कागज़ कोरा कर लो
चिड़ियों-सा चहको मन-आँगन
[आलोकिता जी के लिए लिखी कविता जो मेरे संग्रह से छिटकी पड़ी थी। आज शामिल कर रहा हूँ ]
बदले में ना कुछ चाह करो. 
ये धरा सहिष्णु स्वभावी 
केवल स्व-गुण प्रवाह करो. 
तुम रहो पपीहे-सी प्यासी
बदले में ना कुछ आह करो. 
ये बहुत अधिक स्वाभिमानी  
वारिवाह की ना वाह करो.
वारिवाह की ना वाह करो.
तुम करो स्वयं को रजनीगंध
बदले में ना अवगाह करो. 
ये गंध देखती नहीं अमा, 
राका की अब ना राह करो. 
जीवन-कागज़ कोरा कर लो
तो उसको जबरन नहीं भरो. 
यदि ज्ञान-बूँद की भाँति बनो 
तो एकाधिक मन शुक्ति करो. 
चिड़ियों-सा चहको मन-आँगन
आखेटक दृग से नहीं डरो. 
यदि निद्रा में लेना सपना, 
तो भोर-नींद की चाह करो. 
[आलोकिता जी के लिए लिखी कविता जो मेरे संग्रह से छिटकी पड़ी थी। आज शामिल कर रहा हूँ ]
 
