शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

'नो''दो' ग्यारह हुआ हास

'दो''नो' का है प्रेम यही वे ग्यारह नहीं कभी हो पाये।
'नो''दो' ग्यारह हुआ हास जब उसने उनके मुख पलटाये।
अर्थ हुआ असमर्थ गर्त में गिरा व्यर्थ ही हाय-हाय।
मुहावरे का पहन मुखौटा हास हुआ हास्यास्पद काय।
किया बहुत प्रयास किन्तु कुछ, तुमसे सीधा कह ना पाये।
इसीलिए सब कुछ कहने का करता मन है नये उपाय।
कभी हास के पीछे छिपकर कभी व्यंग्य का गला दबाय।
तरह-तरह की वक्र उक्ति को करता रहता दाएँ-बाएँ।
मन पर बढ़ता बोझ उभरतीं माथे पर चिंता रेखायें।
सरल भाव को तरल पात्र में मेरे प्रियतम पी ना पायें!!


ग्यारह - साथ