गुरुवार, 31 मार्च 2011

नूतन-प्राची संवाद

"तुम कहाँ छोड़ आये शरीर 
मैं लेकर आयी हूँ अबीर 
ओ प्राची! मैं नूतन अद्या 
तुमसे सुनने आयी कबीर."

"ओ चंचल नूतन अधुनातन! 
मैं त्याग चुका अपना शरीर 
अब तुमसे आशा करता हूँ 
दिव बनो करो तम हरण चीर. 

मैं प्राची तो तुमसे ही हूँ 
तुम जब चाहो कर दो फ़कीर. 
तुम चाहो तो हम मिलें सदा 
ना चाहो तो, होवूँ अधीर."