बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

पावक-गुलेल -2

लो खुला द्वार
मैंने उधार
माँगा चन्दा से चंद तेल।
"दिविता से लो" कह टाल दिया
"मैं शीतल, वो पावक-गुलेल।"
हेमंत हार
ओढ़े तुषार
राका से करके खड़ा मेल।
अलि पुण्डरीक में छिपा-छिपा
केसर से करता काम-केलि।"
कवि था अशांत
पर शब्द शांत
अब तक थे सब कल्पना गेल।
चन्दा दिविता हेमंत देख
कर कलम शब्द कवि रहे खेल।

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

पावक-गुलेल

लो खुला द्वार
मैंने उधार
माँगा चन्दा से चंद तेल
"दिविता से लो" कह टाल दिया
"मैं शीतल, वो पावक-गुलेल।"
पावक-गुलेल
लक्षित विचार
कृमि कागों का करती शिकार।
बरसाती रक्तिम गाल किये
कटु-कटु संवादों की कतार।
कर मुक्त भार
अनशन विचार
चढ़ती ऊपर फिर 'छंद-बेल'।
दर्शन लेने की करे क्रिया
पावक-गुलेल से हँसी खेल।

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

समर्पण

तम श्याम तट पर शर्वरी ने
जो रचे थे चित्र सुन्दर
मिट गये वे चंद्र तारे
प्रात के आने को सुनकर.
सब कह दिया था प्रेयसी ने
प्रथम मिलने पर हमारे
अब न जायेंगे कभी हम
पास से हृत के तुम्हारे.
पर ये हृदय कुछ और ही
मुझसे कराना चाहता है
प्रिय प्रेयसी को भूलकर
संन्यास लेना चाहता है.

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

मोदी का गुजरात

इंतज़ार के अंतिम पल में ... प्रिय की अप्रिय बात
"अभी नहीं आऊँगी" कहती ... प्रियंवदा अ'वदात.

कोमल शब्दों के भीतर में ... चुभन भरा बल'घात.
सात दिनों का विरह हमारा ... फिर बढ़ता दिन सात.

अमित-स्नेह ले गया खींचकर ... पहले बहिन बरात*.
दिल्ली-जयपुर, जयपुर-दिल्ली ... छोड़ चला गुजरात.

तब से अब तक ठिठुर रही है ... श्वासों की मम वात.
'शीत' कक्ष में घुसपैठी बन ... रहता है दिन रात.

आने को ऋतुराज द्वार पर ... स्वागत उत्सुक गात.
लेकिन प्रिय को रास आ गया ... मोदी का गुजरात.