बुधवार, 25 जून 2014

आखेट कुशलता

तुम चले, चला धीरे-धीरे
मन मेरा चुपके से पीछे। 
तुम रुके, नहीं रुक सका हाय
संयम मेरे मन को खींचे।
क्यूँ रुके, नहीं तब था जाना
अब जान गया चख हैं तीखे।
रुक जाता तो मन मर जाता
आखेट-कुशलता बिन सीखे।

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

रुक जाता तो मन मर जाता आखेट-कुशलता बिन सीखे।

वाह....

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

मोनिका जी, आपकी 'वाह' की सुगन्धित 'हवा' जब निकलकर कुछ माह आगे बढ़ गई तो लौटकर उसके स्मारक को आज निहार रहा हूँ।