यह ब्लॉग मूलतः आलंकारिक काव्य को फिर से प्रतिष्ठापित करने को निर्मित किया गया है। इसमें मुख्यतः शृंगार रस के साथी प्रेयान, वात्सल्य, भक्ति, सख्य रसों के उदाहरण भरपूर संख्या में दिए जायेंगे। भावों को अलग ढंग से व्यक्त करना मुझे शुरू से रुचता रहा है। इसलिये कहीं-कहीं भाव जटिलता में चित्रात्मकता मिलेगी। सो उसे समय-समय पर व्याख्यायित करने का सोचा है। यह मेरा दीर्घसूत्री कार्यक्रम है।
23 टिप्पणियां:
गहन भावमयी रचना
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मेरी ही चेतना की व्याप्ति यहाँ से वहाँ तक !
रोशनी का कण आँखों मे समा गया ,
जिसने उद्भासित कर दिया दिग् - दिगन्त को !
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गहन भाव लिए ,बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,
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कवि पिता की दृष्टि....
"मुख-द्वार पर सभी स्वरों के बारी-बारी अक्षर चहके।"
अंतर्मन तक वात्सल्य से भीगा गई आपकी भावनाएँ.
आपकी यह सुन्दर रचना शनिवार 08.06.2013 को निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है! कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
बहुत सुन्दर मासूम सी प्यारी कृति
सुंदर
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति
सुन्दर प्रस्तुति..।
साझा करने के लिए आभार...!
सुन्दर भाव लिए बहुत सुन्दर रचना !
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प्रिय मित्रवर ....खूबसूरत रचना लिखी है....पिता का रहस्य मन जान जाता है तो अपने पिता के प्रति और कृतज्ञ हो जाता है...नन्ही परी को खूब सारा प्यार और आशिर्वाद...
हां ब्लॉग पर देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं...पर इसका एक कारण है आपकी रचनाओं के बीच का अंतराल....इसलिए देर से आने से कई कविता पढ़ने का सुख भी मिलता है....कहीं ये सुखद अहसास भी होता है कि नए प्रयोग के बाद भी कविता की सरसता औऱ प्रवाह बना हुआ है...जिस भाषा की सेवा भारतेंदू से लेकर निराला ने की हो..उस कड़ी को बनाए रखना आसान नहीं होता है..पर आप जैसे कई रचनाकारों को पढ़कर पता चलता है कि हिंदी की स्थिती पर जो चिंता करते हैं वो बिना सच्चाई जाने बकवास ही करते हैं।
मर्मस्पर्शी..... अद्भुत पंक्तियाँ
बधाइयाँ आपको......
suprabhat guruji,
.......
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pranam.
सुंदर उद्गार प्रतुल भाई। बिटिया को बहुत सारा स्नेह।
कविश्रेष्ठ रविकर जी! आपके सभी पाठक यह तो समझ ही गए हैं कि आपने अपना परिवार विशाल कर लिया है। सबके पास जाना, उनकी सुनना और फिर प्रतिक्रिया देना यह न केवल आपको रुचता है अपितु सुख-दुःख में हिस्सेदार बनकर उनसे आत्मीयता जताने वाला स्वभाव परस्पर संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ बनाता है।
@ कुशवंश जी आप भलीभाँती जानते हैं वात्सल्य ह्रदय की गहराई और उसमें समाहित भावों की पकड़म-पकड़ाई।
@ प्रतिभा जी, शिप्रा की लहरों में देखा पितृत्व, लगा यह तो मेरे अमूर्त मन का चित्र ही है। आप सूक्ष्मतम भावों को मनोहर रीति से व्यक्त करते हैं।
@ धीरेन्द्र भदौरिया जी, आँसुओं को देखकर आँसुओं का सैलाब ले आना अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति में ही देखा जाता है। क्रिया की प्रतिक्रिया तो सभी देते हैं ..लेकिन प्रतिक्रिया ह्रदयस्पर्शी विरले ही देते हैं। आपकी रचना 'हमने ग़ज़ल पढ़ी' उस आधार पर कहता हूँ।
सुज्ञ जी, आपकी उपस्थिति में स्नेहिल आशीर्वचन होता है और आशीर्वचन में मार्गदर्शन की झलक पाता हूँ।
कल्पना करके बहुत कठिन होता है नई-नई अनुभूतियों और नए-नए भावों को जस-का-तस व्यक्त कर पाना। लेकिन जब वे सभी आलंबन और विषय समीप हों तब उनको व्यक्त करने का समय पास नहीं रहता। :) रस में डूबे हुए रस आनंद का कैसे उल्लेख करें?
अद्भुत पंक्तियाँ
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