बस में बिलकुल भी नहीं धार
बह रही हृदय से जो अपार
राशि-रत्नों की हुई क्षेम*
जो आया था वो गया प्रेम.
रस में निमग्न आनंद-धाम
को जाऊँगा होकर अवाम.
हो राग-द्वेष से दूर, काम
में लाकर पूरा मैं विराम.
ममता माया मोह मध्य धार
में डूबेगी होकर विकार
लाएगा सिन्धु जब भी ज्वार
ला देगा उनको फिर उभार.
नव रूप समन्वित होकर वे
धारेंगे सर पर अरुण पाग.
अपना अस्तित्व मिटाकर वे
बन जायेंगे मेरा विराग.
______________
बस में = वश में
क्षेम = सुरक्षित, सलामत
14 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति |
आभार ||
नव रूप समन्वित होकर वे
धारेंगे सर पर अरुण पाग.
अपना अस्तित्व मिटाकर वे
बन जायेंगे मेरा विराग.
सुन्दर प्रस्तुति |
पंत जी के फ़्लेवर से सुवासित ....
KYA KAHUN...??? KMAAL KAR DIYA IN PANKTIYON MEN...
NEERAJ
Beautiful creation.
सुन्दर प्रस्तुति, शुभकामनाएँ.
ममता माया मोह मध्य धार
में डूबेगी होकर विकार
लाएगा सिन्धु जब भी ज्वार
ला देगा उनको फिर उभार.
नव रूप समन्वित होकर वे
धारेंगे सर पर अरुण पाग.
अपना अस्तित्व मिटाकर वे
बन जायेंगे मेरा विराग. ____
वाह प्रतुल जी बहुत सुंदर नये रूप में विकार भी विराग बन जायेंगे ।
@ रविकर जी,
मेरे विराग को आपने 'चर्चा का मंच' नहीं दिया... केवल 'आभार' का पञ्च दिया.
हाय! विराग प्रकाशित होने से वंचित रह गया.
@ रमाकांत जी,
आपने मेरी ही पंक्तियों को दोहरा दिया...
हाय! मम 'मनोरमा कांता' कहीं विरागी हृदय को खोजने में भ्रमित न हो जाये.
@ कौशलेन्द्र जी,
असल असल होता है और फ्लेवर फ्लेवर समझता हूँ ...... आपने पंत जी की गरिमा बनाए रखी.
पर हाय! मेरे विराग को वियोगी कवि पंत से कमतर क्यों आँका? क्या विवाहित व्यक्ति का विराग अविश्वसनीय होता है?
@ नीरज जी,
बड़े परीक्षक काम की अधिकता में बहुत जल्दी-जल्दी कोपी जाँचते हैं.
और बड़े समीक्षक प्रायः बहुत कम बार उपस्थित होकर अपनी वरिष्ठता महसूस कराते हैं. :)
@ दिव्या जी,
आपका दिखना शुभ संकेत.
द्रवित होता विरक्त मन रेत.
@ डॉ. जेन्नी जी,
आपके प्रथम आगमन पर अभिभूत हूँ. शायद आपने 'मेरे विराग' को समझ लिया हो.
@ आशा जी,
आपने मेरे विराग की ठीक-ठीक समीक्षा करके मुझे निराश होने से बचाया... आभारी हूँ.
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