गुरुवार, 31 मार्च 2011

नूतन-प्राची संवाद

"तुम कहाँ छोड़ आये शरीर 
मैं लेकर आयी हूँ अबीर 
ओ प्राची! मैं नूतन अद्या 
तुमसे सुनने आयी कबीर."

"ओ चंचल नूतन अधुनातन! 
मैं त्याग चुका अपना शरीर 
अब तुमसे आशा करता हूँ 
दिव बनो करो तम हरण चीर. 

मैं प्राची तो तुमसे ही हूँ 
तुम जब चाहो कर दो फ़कीर. 
तुम चाहो तो हम मिलें सदा 
ना चाहो तो, होवूँ अधीर."

गृह कार्य : 
समय निकालकर दी हुई रचना में मात्रिक विधान कर इसी छंद में अपने भावों को व्यक्त करने का अभ्यास करें. 

19 टिप्‍पणियां:

सुज्ञ ने कहा…

गुरू कल चालू कक्षा से,
मैं पलटी कर जाता था।
देख देख प्रश्न कठिन वे,
उलझन में फंस जाता था।

आज पोह फटी मुस्काती,
अंधेरा यों दूर भगा।
पसर रही सूरज की किरणें,
उर में ज्ञान प्रकाश जगा।

Arvind Mishra ने कहा…

बढियां है !

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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सुज्ञ जी,
आप जैसी कोशिश कर रहे हैं. उससे लगता है कक्षा में दूसरे पाठ की तैयारी करना शुरू कर दूँ.
लेकिन मुझे सभी को एक साथ लेकर बढना है - मेरी विवशता है.

अच्छा मेधावी छात्र वही होता है जो सर्व कल्याण में स्व कल्याण समझे. अपने स्वध्याय के प्रयास जारी रखियेगा. तब तक मैं फायदे की कोई ट्यूशन खोजने जाता हूँ.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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अरविन्द जी,
आपकी निगरानी बनी हुई है. अब कोई कोताही नहीं होने पायेगी.
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डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर ...कोशिश करेंगें ....

ZEAL ने कहा…

नूतन-प्राची संवाद अति मोहक है। प्रेम और समर्पण की उत्कृष्ट मिसाल । दोनों का अस्तित्व भी परस्पर एक दुसरे पर भी निर्भर है। बेहतरीन काव्य शिल्प।

सञ्जय झा ने कहा…

suprabhat guruji,

गुरू कल चालू कक्षा से,
मैं पलटी कर जाता था।
देख देख प्रश्न कठिन वे,
उलझन में फंस जाता था।

bandhu sugyaji ka abhar jo itna sundar jawaw mere liye banaya....

pranam.

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुंदर|
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|

सुज्ञ ने कहा…

संजय जी,

गुरू के सामने तो मत बाताओ कि होमवर्क मुझसे करवाते हो!!

Satish Saxena ने कहा…

.. इस कविता ने दिल मोह लिया प्रतुल !!
शुभकामनायें आपको !!

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

प्रतुलजी आपके ब्‍लाग पर दो श्रेष्‍ठ कविताएं पढ़ने को मिली एक गम्‍भीर काव्‍य और दूसरा सुज्ञ जी द्वारा रचित सहज काव्‍य। दोनों का ही अभिनन्‍दन।

Amit Sharma ने कहा…

नए संवत २०६८ विक्रमी की हार्दिक बधाई।
नया साल आपके और आपके कुटुंब को आनंद प्रदायी हो।

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

सर जी .......
इस बेहद सुंदर और अर्थपूर्ण काव्य रचना को पढ़कर
मन प्रफुल्लित हो गया.
इस रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई.
आपको नवसंवत्सर की ढेरों शुभकामनाएँ....

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

सञ्जय जी,
मेधावी छात्रों की कोपी दिखाकर आप कब तक बचेंगे?
अभी तो आपकी शरारत मेरी मुस्कान का कारण बन रही है. लेकिन आपमें छिपी सृजनात्मक शक्तियाँ जिस दिन बाहर आकर कूद-फांद करेंगी उस दिन आप भी अचंभित होंगे.
इसलिये स्वयं में छिपी शक्तियों के साथ छेड़खानी अवश्य करनी चाहिए.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

डॉ. मोनिका जी, जब भी खाली समय मिले अपने सुभीते से चैतन्य को पाठशाला में लेकर आयें. यदि उसमें काव्य के प्रति तनिक भी ललक है तो उसे अभी से ही एडमिशन दिलवायें. मेरा भी प्रयास रहेगा कि कभी-कभी बाल-स्तर का 'रस-छंद विधान' पाठ रूप में लेकर आऊँ.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

दिव्या जी, आपको यदि उपयुक्त लगे तो अदिति और सुयश को भी पाठशाला में दाखिला करायें. हिन्दी शिक्षण और काव्य-शिक्षण की सरल कक्षाएँ लगाने की कोशिश करूँगा. इस तरह मेरा खाली समय भी मेरी रुचि को पूरा कर सकेगा.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

अमित जी, भौमिक तो अभी छोटा है लेकिन मुझे विश्वास है कि मैं भविष्य में उसके लिये भी कुछ-न-कुछ अवश्य करूँगा. पाठशाला में सभी आयु वर्ग का प्रवेश हमेशा खुला है.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि मेरे अध्यापन में कहीं कोई कमी आयेगी तो सर्व आदरणीय श्री अरविन्द मिश्रा जी, श्री सतीश सक्सेना जी और श्रीमती अजित गुप्ता जी अपने स्नेहिल स्वभाव से उसे दूर कर ही देंगे.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

क्योंकि विरेन्द्र जी पत्रकार है, पाठशाला की समुचित समीक्षा द्वारा समय-समय पर अपनी क्षमताओं का प्रयोग अवश्य करते रहें तो हमारे प्रयास की प्रासंगिकता समझ आती रहेगी.