गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

नयन करते हैं आज विलाप


[पुत्री की विदायी पर] 

नयन करते हैं आज विलाप 
दूर हो जाएगा खुद आप 
हमारे क़दमों से चुपचाप 
पगों का वो प्यारा पदचाप 
रहा अब तक जो मेरे पास 
कमी उसकी होवेगी आज़ 
समाहित होगा हर्षोल्लास 
भवन में शांत-व्यथित पद नाद. 

हास कितना दुखदायी आज़ 
खुशी कितनी पीड़ा में आज़ 
थरथराते मेरे संवाद 
विदा कैसे होगी वर साथ 
वधु कैसे सखियों को छोड़ 
जायेगी घर से कैसे दूर 
मिला अब तक जो घर में नेह 
पिया से पावेगी — संदेह! 

मौन को तोड़ आज़ निज नाद 
खूब रोवेगा जमकर आज़ 
किसी के घर की गुड़िया आज़ 
बनेगी दूजे घर की लाज. 
खुशी के अवसर के पश्चात 
पिता के नयनों से दिनरात 
अश्रुओं की होगी बरसात 
कहूँ मैं कैसे अपनी बात? 

अभी हँसते दिखते जो नयन 
भीग जायेंगे सारे, अयन 
पुनः हो जाएगा चिर मौन 
दशक-द्वय पहले जैसी पौन 
बहेगी, फिर से आँगन में 
पिता-माँ कहवेगा नित कौन? 

पिता के ह्रदय के उदगार 
रूप लेते हैं जब साकार 
स्वतः करता वो ही अभिसार 
नहीं यौतुक हैं ना उपहार. 

शब्दार्थ : 
दशक-द्वय पहले — २० वर्ष पहले [जब उसका जन्म नहीं हुआ था]. 
यौतुक — दहेज़ 

10 टिप्‍पणियां:

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

कविता आपकी, भाव प्रधान,
सुन्दर चित्रण, सिमेटें गान,
बाबुल-बेटी संबंधों का सार,
भाव अद्वितीय ; आपका आभार....

आंसू फिर कभी बहा लेंगे, अभी तो बस आनंद ही आया पदकर ...

जारी रखिये ...

सुज्ञ ने कहा…

पिता के ह्रदय के उदगार रूप लेते हैं जब साकार स्वतः करता वो ही अभिसार नहीं यौतुक हैं ना उपहार.

बिदाई को गुंथा है आपने अश्रुबिंदुओं से।

उस्ताद जी ने कहा…

4.5/10

सुन्दर भाव

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

दोस्त वर्तमान समय में अपने लिए तो ये कविता तो एक दम सटीक है. मैं समझता हूँ शायद आपको खबर मिल चुकी होगी.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

उस्ताद जी,
आपने पासिंग मार्क्स देकर मुझे मार्क्सवादी बना दिया. मार्क्सवादी मजदूरों को मेहनत का फल उतना ही मिलता है जिससे गुजर-बसर भर हो सके. ज़्यादा पायेंगे तो पूँजीपती नहीं ban jaayenge.
pranaam उस्ताद जी.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

मित्र दीप
खबर तो नहीं मिली. क्या वन्दना का विवाह तो नहीं तय हो गया?
हाँ, अब वह बड़ी हो गयी है विवाह योग्य. आँसुओं ने स्टोर होना शुरू कर दिया होगा.

Amit Sharma ने कहा…

किसी के घर की गुड़िया आज़
बनेगी दूजे घर की लाज.
खुशी के अवसर के पश्चात
पिता के नयनों से दिनरात
अश्रुओं की होगी बरसात
कहूँ मैं कैसे अपनी बात?

__________

बेटी की विदाई एक ऐसा पल जब इस्पात का बना ह्रदय भी अपने आंसू नहीं रोक पाता है !
क्या भावपूर्ण रचना है गुरुदेव, वास्तव में

ZEAL ने कहा…

.

भाई प्रतुल,

इन पंक्तियों में जितनी पीड़ा है , उससे कई गुना ज्यादा उन पलों में होती है , जब लड़की विदा होती है। अपने पूरे जीवन में पिताजी को दो बार ही रोते देखा। एक मेरी विदाई पर और दूसरा माँ की मृत्यु पर।

विदाई की उस बेला में मायके वालों के साथ बारातियों को भी रोते देखा ।

जब गाडी चली तो लगा सब कुछ पीछे छूट गया। मौत के पलों में भी उतना दुःख नहीं होता होगा जितना अपना घर छूटने पर होता है। जिसके साथ २०-२५ बरस गुज़ारे हों, उनसे एक झटके में दूर हो जाती हैं लडकियां। उस प्रेम को मन कहीं तलाशता है ताउम्र।

आपकी इस कविता को पढ़कर बहुत रोई हूँ....

कमेन्ट लिखने बाद दिल भर कर रोना है आज...

शुभ रात्रि।

आपकी बहिन दिव्या।

.

ZEAL ने कहा…

samay-- 11: 11

सञ्जय झा ने कहा…

PRATUL BHAI .... PRIMARY KE MASTER...
HOTE HUE YAHAN AAYA HOON...

ATTA RAHOONGA....BINA BULAYE......

JAHAN SE ROTI MILTI HAI OOSE SALAM KARTE HAIN........
JAHAN SE BHOOK MIT..TI..HAI OOSE PRANAM KARTE HAIN....

PRANAM.