क्या हीन भाव आया मन में
जो अपने से ही हुए रुष्ट.
या नहीं मिला जो था मन में
ये चिंता तुमको लगे पुष्ट.
क्या क्रोध आपको है हम पर
ये रेखाएँ क्यूँ मस्तक पर.
क्यूँ भृकुटी को है तान रखा
क्या रक्त खोलता है हम पर.
क्यूँ हुआ ताप तेरे मन में
जो घृणित भाव हैं देखन में.
मुख नयन आपके लाल हुए
चपला चमके जैसे घन में.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें