कर रहे चपल चख थिर अभिनय
हैं बोल रहे द्वय विंशति वय.
हो गयी हमारी, तुम बोलो —
"क्या पीया आपने पावन पय."
ना, नहीं अभी है संशयमय
मम दशा, हलाहल अथवा पय
मैं जान नहीं पाता सचमुच
हैं कौन वस्तु जिससे हो जय.
" 'बहुजन हिताय' विष अमृतमय
'है सुधा' वासनामयी सभय."
— यह कथन किया करता सतर्क
है दशा इसलिये संशयमय.
उपदेशों में कितनी हैं जृम्भ
है स्वाभिमान में कितक दंभ.
मम दृष्टि खोजती यही सूक्ष्म
द्रुतता में है कितना विलम्ब.
चख चपल हलाहल आपानक
अथवा घट स्वर्णिम सुधा भरा.
संतुलित अंक द्वय विंशति के
वा रौद्रमहा देता घबरा.
शब्दार्थ :
द्वय विंशति — २२;
चख — आँखें
जृम्भ — जम्हाई, लक्षित अर्थ 'सारहीनता';
दंभ — घमंड, अहंकार;
रौद्रमहा — शिव का नाम [महारौद्र] २२ अंक महारौद्र जाति का है.
आपानक — मदिरा पान करने का पात्र;
संदेह अलंकार का नया उदाहरण
[यह कविता २२ वर्षीय एक चंचल बाला पर लिखी गयी है]
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